लघुकथा

वफादार

चालीस वर्ष पहले की बात है कि मेरे पिता जी की मृत्यु हो गई। पता लगते ही हम गाँव जा पुहंचे। मेरे पिता जी सारी ज़िंदगी अफ्रीका में गुज़ार कर हमेशा के लिए गाँव आ गए थे और अपने खेतों में काम करने लग गए थे । पैंशन हो गई थी और वोह बहुत खुश थे। मसरूफ रहने के लिए ही उन्होंने खेती करनी शुरू कर दी थी। उन्होंने एक कुत्ता भी पाल रखा था जिस का नाम था जैकी। हर वक्त उनके पास दो ही चीज़ें होती थी ,एक रेडिओ और दूसरा जैकी। हमारे खेत घर से सिर्फ दो सौ गज़ की दूरी पर ही थे और सारा दिन उन का घर से खेत और खेत से घर आना जाना लगा ही रहता था। एक दिन पिता जी जवारी के खेत में काम कर रहे थे , खेत के बाहिर रेडिओ वज रहा था और गाए इर्द गिर्द घूम घूम कर घास चर रही थी। हमारा एक कुंआ भी होता था जो अब उजड़ा हुआ था क्योंकि टयूब वैल से ही खेतों को पानी दिया जाता था।
अचानक गाए घास चरते चरते कुँए के नज़दीक आ गई। पिता जी घबरा गए कि गाए कहीं कुएँ में ना गिर जाए और उसी वक्त दौड़ कर गाए को मोड़ने के लिए दौड़ पड़े। गाए तो वहां से हट गई लेकिन पिता जी खुद कुएँ में गिर गए। यह सब हमारे कुत्ते जैकी ने देखा और घर को भागा। घर आते ही जोर जोर से माँ जिस को हम बीबी कहते थे को भौंकने लगा। बीबी उस को डांटने लगी ,अरे हट्ट ! किया हुआ है तुझे? जैकी ! तेरा दिमाग खराब हो गिया है ? जैकी फिर खेतों की तरफ दौड़ पड़ा , कुछ देर बाद फिर आ कर भौंकने लगा लेकिन किसी ने भी समझने की कोशिश नहीं की। शाम हो गई , जब पिता जी घर नहीं आये तो सब सोचने लगे कि अब तक तो वोह घर के कई चकर लगा देते थे , कहाँ गए ! मेरे छोटे भाई जब कालिज से आए तो वोह भी हैरान से हो गए और खेतों की तरफ जाने लगे। जैकी भी दौड़ कर आगे आगे चलने लगा। जाते ही जैकी कुएं की तरफ जोर जोर से भौंकने लगा। छोटे भाई इधर उधर देखने लगे जिधर रेडिओ अभी भी वज रहा था। लेकिन जैकी अपने पौंचों से मट्टी कुरेदने लगा और कुएं की तरफ मुंह कर के भौंकने लगा। तब छोटे भाई ने कुएं के बीच में झाँका और धियान से देखा। कुएं में सौ सौ रूपए के नोट तैर रहे थे।
छोटे भाई को याद आया की पिता जी ने आज पोस्ट ऑफिस से पांच हज़ार रूपए लेने थे।अब और कुछ लिखने की मुझ में हिम्मत नहीं है। मैं तो सिर्फ जैकी के बारे में ही लिखना चाहता हूँ, उस ने खाना पीना छोड़ दिया। जैकी के दिल को इस कदर ठेस पौंहची कि वोह चुप करके बैठा रहता , उस के सामने रोटी रखते थे लेकिन वोह मट्टी खरोच कर रोटी पर डाल देता था , उस की आँखें पानी से भरी रहती। बीबी उस के मुंह में रोटी ठूंसती लेकिन जैकी टस से मस ना होता। दूध रखते उस के सामने लेकिन वोह आँख उठा कर भी ना देखता। एक हफ्ते बाद जैकी ने तड़प तड़प कर जान दे दी।

7 thoughts on “वफादार

  • सविता मिश्रा

    ओह बहुत दुखद घटना ……जानवर भले न बोल पायें पर अपनी वफा हर तरह से दिखाते है हमसे ही चुक हो जाती है सब कुछ कह सुनने के बावजूद ….हमारा नमन मृत दोनों ही आत्मा को …

  • मनजीत कौर

    दिल को छु लेने वाली सच्ची कहानी भाई साहब मैं विजय भाई साहब से सहमत हु पशु आदमी से अधिक वफादार होते है यह बोल नहीं पाते पर अपने मालिक से पूरी वफादारी निभाते है और मालिक के लिए जान भी कुर्बान कर देते है इसी वफ़ादारी का सबूत जैकी था जिस ने अपने मालिक की जान बचाने की जी तोड़ कोशिश की पर कामयाब न हो सका और उनके वियोग मैं अपने भी प्राण त्याग गया ऐसी वफ़ादारी को मेरा प्रणाम |

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      मंजीत बहन , धन्यवाद . इस कहानी को मैं कभी भूल नहीं सकता . मुझे यकीन है कि मेरे पिता जी आज भी जिंदा होते अगर यह हादसा न होता किओंकि उन कि सिहत इतनी अच्छी थी कि उन के हाथ स्टील जैसे थे . वोह जवान लगते थे चाहे वोह उस समय ५५ वर्ष के थे . भविष्य को कौन जानता है ? जैकी की बात मैं बहुत दफा कर चुका हूँ , कभी भूल नहीं सकता .

  • शान्ति पुरोहित

    बहुत ही मार्मिक गुरमेल भाई साहब

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद शान्ति बहन .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक कहानी. सच है कि पशु आदमी से अधिक वफादार होते हैं.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद विजय भाई .

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