अंदरूनी बातें
स्वामी दयानंद उस विक्रेता बालक को येन (पैसे) देने लगे, तो वह जापानी बालक पैसे लेने से मना कर दिये । स्वामी जी उत्तर में कह उठे — ‘बच्चे! इसकी कीमत तो तुम्हें लेनी होगी, क्योंकि मैं भारतीय हूँ और भारतीय ऐसे ही मुफ़्त में खा नहीं सकते !’
तब जापानी बालक ने कहा– ‘ठीक है, अगर आप देना ही चाहते हैं, तो आप मुझे मुहमाँगी कीमत देने का पहले वादा कीजिये ।’ स्वामी जी ने वादा किया । बालक कह उठा– ‘भले आदमी, आप यही कीमत अदा कर देना कि अपने भारत में जाकर यह किसी से ना कहना कि आपको मेरे जापान में तीन दिनों तक भूखा रहना पड़ा !’ स्वामी जी के नेत्र सजल हो उठे, उस बालक के आँखों में भी आँसू थे कि काश, मेरे भारत के लोगों में भी होते, ऐसा ही स्वाभिमान ! यह लप्रेक (लघु प्रेरक कथा) हमें यह भी सीख देता है कि हम अपने घर – परिवार, कार्यालय अथवा देश की अंदरूनी बातों को अन्यत्र साझा मत कीजिये।