कड़वा सच (कविता)
छल, कपट, ईर्ष्या, अहम का गर्म बाज़ार है,
छद्म वेश धारण किए दिखता हर इंसान है।
मुंह पर मीठे बोल,भीतर ही भीतर घात है,
कपटी लोगों की अजब गजब सी जात है।
शतरंज का खेल खेलते बनते बड़े होशियार हैं,
बेबस और लाचार को ठगते,कितने ये मक्कार हैं।
तेरे मेरे बीच में जो ये खामोशी की दीवार है,
धोखे की है जीत और सच्चाई की हार है।
— कल्पना सिंह