दे दे प्यार दे दे
बाहर निकलते ही
महफ़िलें सजती हैं,
रात कमरे में
सिर्फ
तन्हाइयां रहती हैं !
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किसी के दीदार को तरसता है,
किसी के इंतज़ार में तड़पता है;
ये दिल भी अजीब चीज़ है,
जो होता है खुद का;
मगर किसी और के लिए
धड़कता है!
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आज भी
तुम्हारी देह की महक को-
उतनी ही तीव्रता से
पहचानता हूँ;
कि नींद में भी तुम्हें पाने की-
हर करवट
छटपटाहट लिए रहता हूँ !
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तुम चाय की प्याली
थमाकर
यूँ फुर्र से चली जाती हो;
और मैं देखता रहता
कनखियों से
तुम्हारी मटकती
चाल को !
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किसी ने सच कहा है-
तुम्हारे
घुमावदार लतीफ़े पर
आज भी मुस्कराता हूँ;
जब तुम मई की
तपती छत पर
मिर्च सुखाने के बहाने
आती थी !
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तुम मेरा प्रेम बैंक हो
कि सब पर खर्च कर
देने के बाद भी;
जहाँ मैं जमा करती
अपनी अतिरिक्त पूंजी
और पाती हूँ ब्याज भी !
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मेरा दिल
एक खाली कमरा,
कमरे में….
रहने लगी !
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मुझ
दिलजले का
यहाँ
बुझे हैं दीये !