कविता

दे दे प्यार दे दे

बाहर निकलते ही
महफ़िलें सजती हैं,
रात कमरे में
सिर्फ
तन्हाइयां रहती हैं !
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किसी के दीदार को तरसता है,
किसी के इंतज़ार में तड़पता है;
ये दिल भी अजीब चीज़ है,
जो होता है खुद का;
मगर किसी और के लिए
धड़कता है!
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आज भी
तुम्हारी देह की महक को-
उतनी ही तीव्रता से
पहचानता हूँ;
कि नींद में भी तुम्हें पाने की-
हर करवट
छटपटाहट लिए रहता हूँ !
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तुम चाय की प्याली
थमाकर
यूँ फुर्र से चली जाती हो;
और मैं देखता रहता
कनखियों से
तुम्हारी मटकती
चाल को !
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किसी ने सच कहा है-
तुम्हारे
घुमावदार लतीफ़े पर
आज भी मुस्कराता हूँ;
जब तुम मई की
तपती छत पर
मिर्च सुखाने के बहाने
आती थी !
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तुम मेरा प्रेम बैंक हो
कि सब पर खर्च कर
देने के बाद भी;
जहाँ मैं जमा करती
अपनी अतिरिक्त पूंजी
और पाती हूँ ब्याज भी !
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मेरा दिल
एक खाली कमरा,
कमरे में….
रहने लगी !
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मुझ
दिलजले का
यहाँ
बुझे हैं दीये !

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.