उस पार सरहद के चली
उड़ती पवन पंछियों संग
उस पार सरहद के चली।
न रोके कोई न टोके कोई
गुनगुनाती चली
मुस्कुराती चली।
उस पार सरहद के चली।
नदिया से मिलकर सागर पे लेटी
बालू के कण कुछ लेती चली।
इत्र उड़ाएं पंख फैलाए
नटखट अदा दिखाती चली।
उड़ती पवन पंछियों संग
उस पार सरहद के चली।
पार सरहद के दरख्तों से लिपटी
मचानों से उतरी छत पर चढ़ी।
खिड़की से झांका आंगन में खेली
गीत खुशी के गाती चली।
उड़ती पवन पंछियों संग
उस पार सरहद के चली।
अरहर को पकड़ा मकई को छुआ
खेतों में दौड़ी बच्चों सी खेली।
सरसों संग नृत्य करती
धान से बतियाती चली।
उड़ती पवन पंछियों संग
उस पार सरहद के चली।
निकल हवेली से झोपड़ी में गई
दर्द के आंसू पीती चली।
सुकून के दो पल देकर सभी को
दुआएं बुज़ुर्गों की लेती चली।
उड़ती पवन पंछियों संग
उस पार सरहद के चली।
— निशा नंदिनी भारतीय