सहमी आंखों में इंतजार
आंगन में बैठी केसर देवी सूरज की तपन ले रही थी | तभी बेटा लालचंद आता है | मां से कहता है, मां अगले महीने होली का त्यौहार आ रहा है | इस बार तुम हमारे लिए घर पर ही हिस्से-गूजे बनाना ! मां कहती है ठीक है | अगले दिन केसर देवी अपनी पड़ोसन पिंकी से यह सब बात बताती है | मेरा बेटा हिस्से-गूजे बनाने की बात कह रहा था | बहन तुम्हें तो पता ही है | घर राशन की कमी है | पिंकी ने बताया कि तुम अपना राशन कार्ड बनवा लो, फिर आपको सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान से राशन मिल जाएगा | उसने पूछा यह सब कहां से बनेगा | क्योंकि वह पढ़ी-लिखी नहीं थी | पिंकी ने बताया कि सब राशन डीलर की ही बनवा देगा |
केसर अगले ही दिन अपनी ग्राम पंचायत में राशन डीलर के पास जाती है | और कहती है कि मुझे राशन कार्ड की जरूरत है | राशन डीलर ने बताया, कि राशन कार्ड तो आपका बन जाएगा | लेकिन पांच सौ रुपए का खर्चा आएगा | यह बात सुनकर केसर सहम जाती है | अपने मन में कहती है | कि अगर मेरे पास अगर पांच सौ रुपए होते तो मैं राशन खरीद लेती | डीलर कहता है क्या हुआ ? बनवाना है तो बताओ नहीं तो आगे निकलो | केशर निराश होकर, रोने की आवाज़ में कहती है, मेरे पास पांच सौ रुपए नहीं है | आपको तो पता ही है, कि मेरे पति सुरेश की मृत्यु पांच महीने पहले ही हुई हैं | पूरा पैसा उनकी बीमारी में खर्च हो गया है | अब मेरे पास एक फूटी कौड़ी तक नहीं है | घर में तीन बेटे एवं दो बेटियां हैं | बहुत छोटे बच्चों का पालन पोषण करना बहुत मुश्किल हो रहा है | फिर आप ही बताओ मैं आपको पांच सौ रुपए कहां से दे दूं ?
राशन डीलर का दिमाग बहुत शातिर था | उसने कहा मैं आपकी सहायता कर सकता हूं | लेकिन तुझे मेरी सहायता करनी पड़ेगी! केसर ने जवाब में पूछा कैसी सहायता! डीलर बोला तुम तो सब जानती हो फिर क्यों पूछ रही हो ? यह सुनकर केसर दंग रह जाती है | और उसी वक्त वह राशन डीलर के यहां से निराश होकर घर वापस आ जाती है | पूरी रात उसे नींद नहीं आती है | सोचती रहती है, कि मुझे क्या करना चाहिए? उसने अपने मन में कहा | अगर आज मैंने ऐसा कोई गलत कदम उठाया | तो भविष्य में मेरे बेटे- बेटियों को ये ज़ुल्मी समाज जीना मुश्किल कर देगा |
उसने अपने आप से कहा कि मैं अपने नाम की नाक की छोटी सी वाली बेच कर राशन कार्ड बनवा के रहूंगी |
सुबह होते ही बिना खाना खाए हुए केसर बनिए की दुकान पर पहुंच जाती है | कहती है कि मुझे पैसे की जरूरत है, इसलिए मैं यह बेचने आई हूं | वनिया नाक की बाली को बिना तोले हुए |पहले वाली फ़िर केसर की तरफ देखता हुआ बोलता है | और कहता यह तो केवल पांच सौ तीस रुपए की बिच पाएगी | उसने कहा ठीक है आप मुझे 530 दे दो | रुपए लेकर वह उसी राशन डीलर को अपना एवम् अपने बच्चों का आधार कार्ड के साथ पैसे दे देती है | डीलर कहता है, आखिर तुम 500 रुपए ले ही अाई | डीलर पैसे लेते हुए कहता है अब तेरा राशन कार्ड बन जाएगा | तू 15 दिन बाद अपना कार्ड ले जाना |
फिर वह घर वापस आकर अपने बच्चों को राशन कार्ड बनवाने की बात करती हुई खुश होती है |
अब वह 15 दिन बाद राशन डीलर के पास जाती है | और कहती है कि मेरा राशन कार्ड दे दो | डीलर उसको हाथों में राशन कार्ड थमा देता है | और कहता है कि अगले महीने से तुझे तेरा 30 किलो राशन सस्ते दामों में मिल जाएगा | होली के त्योहार के चार दिन पहले ही राशन बटना प्रारंभ हो जाता है | उसकी पड़ोसन पिंकी भी राशन ले चुकी थी | केसर बेटे लालचंद को राशन लेने के लिए कंट्रोल पर पहुंच जाती है | दो घंटे तक लाइन में लगने के बाद उसका नंबर आता है, वह बहुत उत्सुक थी | कि उसे इस बार राशन मिल ही जाएगा | हुआ यह कि केसर का अंगूठा फिंगर मशीन पर लगाया और फिंगर सफल रहा | लेकिन राशन डीलर अपनी खुन्नस निकालने के लिए उसने केसर से झूठ बोल दिया | कि तेरा राशन इस बार सरकार ने नहीं भेजा है | वह कहती है मैं मर जाऊंगी | गरीबी के कारण मेरे परिवार की हालत बहुत दयनीय है | इस बार राशन नहीं मिला तो मेरे घर में होली का त्यौहार सूना रह जाएगा | वह डीलर से प्रार्थना करती हुई कहती है, अब मुझे क्या करना है ? जिससे मुझे राशन मिल जाए | कहता है कि आप लखनऊ जाकर सरकार से मिले वही आपको राशन दिला सकती है | राशन डीलर कितना आदमखोर है कि उसे उत्तर प्रदेश सरकार से भी डर नहीं है |
बेचारी केसर बेटे लालचंद के साथ खाली हाथ ही निराश होकर घर लौट आती है | और अपने आप को मन ही मन कोसती है कि आज मैं पढ़ी-लिखी होती ! तो मैं अपना हक-अधिकार लड़ झगड़ कर ले लेती | मैं आज प्रतिज्ञा करती हूं | कि मैं खाना नहीं खाऊंगी लेकिन अपने बच्चों को जरूर पढ़ आऊंगी | भविष्य में मेरी जैसी लाचार केसर ना बन पाए | साथ में किसी राशन डीलर की शिकार ना हो सके |
क्या इस बार होली के त्यौहार पर अपने बच्चों को केसर हिस्से- गूजे खिला पाएगी? आखिर कब तक सहमी आंखों में इंतजार रहेगा…
— अवधेश कुमार निषाद मझवार