कविता

अगर तुम न होते….

सुनो !
अगर तुम न मिलते
तो मैं न होती और ना ही मेरी कविताएं……

हाँ सच !
जबसे आए हो जिंदगी में
एक नए एहसासों में ढलने लगी हूं मैं
तुम्हारे ख्यालों का आशियाना
प्रेम का ताजमहल गढ़ने लगा है

सुनो !
तुम्हारे दिए प्रेमसिक्त जज्बातों पर
एक मीठा सा इल्जाम है मेरा
हां ! ये मुझमें होकर करती है मुझसे जुदा….

अब मैं शून्य हो चुकी हूं तुम आकार
भावनाओं के पन्नो पे
एक नई सूरत मेरी उतरने लगी है

शब्दों के आकार में प्रेम का चेहरा
जिसमें दोनों के जज्बात संयुक्त….

सुनो !
तुम मुझे पढ़ना मेरे इस नए चेहरे में
जो तुम्हारे प्रेम की आभा से सृजित हुई हैं मुझमें।

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]