शीर्षक :- सिंधु ताई
जिन्दगी खोने बैठी रेलवे पटरी पर,
उमंग जगी जब नजर पड़ी बेटी पर।
अंधेरे में उम्मीद की लौ जगाई,
ना मुसीबतों से हारी सिंधु ताई।
श्मशान था ताई का घर,
प्रेतों से नहीं था इंसानों से डर।
मुर्दों के साथ कई रात गुजारी,
कमजोर नहीं ममतामयी नारी।
श्मशान में अस्मिता बचाती,
जलती चिता पर रोटी पकाती।
मुर्दों का वस्त्र करती धारण,
कभी भजन गाती वो भिखारण।
अपना दर्द तो अब भूल गई,
दूसरों के लिए जीना सीख गई।
ना छल कर बैठे अंदर की मां,
दानकर बेटी को बनी जगत मां।
दिल में ममता की लौ जलाई,
आधी रोटी भी बांट कर खाई।
हजारों अनाथों की है वो माई,
शत् शत् नमन तुम्हें सिंधु ताई।
सारिका ठाकुर “जागृति”
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ग्वालियर (मध्य प्रदेश)