हास्य कविता – मैं कवि सम्मेलन यार
‘चिंटू के पापा,
आज का बात है,
बड़ा चेहरे पर गौर फरमाई रए हो,
खुद ही सेव बनई रए हो,
का कहीं, निमंत्रण पर जाई रए हो ?
पर ई कोरोना में कौन पगलवा तुम्हें है बुलाई,
जा बात न समझ आई |
अरी भागवान ! क्यों खामखा,
दिमाग के घुडवा, दौड़ाई रई हो,
ऊ का है न आज…..
हम एक कवि सम्मेलन में सादर निमंत्रित हैं,
हाय दइया ! उ सेनेटवा को
अपना किताबन के झोला में रखी,
मुंहढका को,
औ का क़हत हैं. ऊ दस्ताना पहनी का,
फिर हम निकली के देत तुमे,
हाँ ! चिंटू के पापा |
चलो हम तुहार कपड़ा रेडी करत हैं जाके,
अरे रे रे ….अब का करे हम तुहार दिमाग का,
अरे चिंटू की अम्मा,
हम कहीं नाहिं बाहर जा रहे,
घर सेईं, ई बैठका से, अपने लेपटुपवा सें
हम पौंच जहींएँ ऑनलाइन,
तुम चुपचाप देखबा, बीच में बोलि का नाहिं |,
जा बात हमाईं समझ सें बाहर है,
ऐसें-कैसे तुम बैठी हियाँ सें पौंचबी, |
ऑनलाइन तो हम भी सुनीं हैं बहुत टीबी मां,
बिजली पाईप लाइन सें आत तौ ऑनलाइन,
नल पाईप सें आत, तौ ऑनलाइन,
घर में खटका ऑन करो सब चालू होई जात |
पागल न समझीं हमें,
हां स्कूल नाहिं गए पर सब समझीं हाँ |
चिंटू के पापा तुम सो काहे गए,
तनिक हम भी तौ देखें के
ई लेपटुपवा की पतली सी पाइप सें, तार सें,
जा की भीतर तुम दिखाओ हमें,
कौनसों खटका हम ऑन करीं
अरे उठो तनक …. जे तो सो गए …….
अब जब उठीं तब डांटिबें……कि,
चिंटू की अम्मा तुमने देर करा दई …..
— भावना अरोरा ‘मिलन’