पटाखों से प्रदूषण बनाम पृथ्वी, पर्यावरण, प्रकृति और हम मानव
(पृथ्वी दिवस, 22 अप्रैल के उपलक्ष्य में )
इस पृथ्वी पर हो रहे भयंकर प्रदूषण से समस्त जीवों, वनस्पतियों और मानवप्रजाति को भी जो उक्त जैवमण्डल का ही एक अत्यन्त छोटा सा भाग है, को बचाने के लिए हमें अत्यन्त शीघ्र कदम उठाने ही होंगे। हमारे भारतीय उच्चतम न्यायालय द्वारा पर्यावरण को बचाने हेतु पिछले साल दीपावली से पूर्व अत्यधिक प्रदूषण के कारक बन रहे पटाखों और आतिशबाजी पर शाम 8 बजे से 10 बजे रात्रि तक सीमित प्रतिबन्धित करने का आदेश सर्वथा उचित, सराहनीय व स्वागत योग्य है । इसे अपने क्षुद्र सामाजिक, धार्मिक व राजनैतिक स्वार्थ के वशीभूत होकर आलोचना करना या अवमानना करना सर्वथा निन्दनीय है। यह पृथ्वी बचेगी, तभी इस पर रह रहे सभी जीव, वनस्पति और मानव प्रजाति भी बचेगी, चाहेे वो हिन्दू हों, मुसलमान हों, सिख हों, ईसाई हों, जैन हों, यहूदी हों आदि-आदि सभी लोग भी बचेंगे । सम्पूर्ण मानव समाज को चाहे वे किसी भी धर्म के मानने वाले हों, उन सभी को भी सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा, पीने के लिए स्वच्छ पानी, रहने के लिए साफ-सुथरी जमीन, वातावरण को संतुलित रखने के लिए वनस्पतियाँ और जीवन में सहयोगी के रूप मे पशुधन का होना, बहुत ही आवश्यक चीजें हैं, परन्तु बहुत दुःख की बात है कि मानव समाज के अत्यधिक लालच, अत्यधिक संग्रह करने की उसकी हवश और लालसा ने इस पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन ने इस माँ रूपी पृथ्वी का स्वास्थ्य अत्यन्त खराब कर दिया है, जिससे मौसम परिवर्तन, सुनामी, सूखा, बाढ़, वैश्विक स्तर पर बढ़ता तापमान वृद्धि, अकाल, भूस्खलन, जनसंख्या विस्थापन और गंभीर बीमारियों जैसी गंभीर समस्याएं अब इस आधुनिक दुनिया में प्रायः ज्यादे ही पैदा हो रहीं हैं।
इसके समाधान के लिए पूरे मानव जाति को बिना किसी धार्मिक और जातिगत् भेद-भाव के अपनी माँ तुल्य धरती और उसके पर्यावरण को बचाने हेतु सामूहिक रूप से प्रयास किए ही जाने चाहिए। इसके लिए हम सबको अपने जीवन को ऐसा संतुलित बनाना होगा कि हमारा जीवन भी सुरक्षित रहे और साथ-साथ हमारी धरती और उसका पर्यावरण भी सुरक्षित और संतुलित रहे । इसके लिए जनसाधारण को जागरूक करते हुए, स्कूल-कालेजों के पाठ्यक्रमों में भी पर्यावरण संरक्षण को एक अनिवार्य विषय के रूप में एक विषय बनाने हेतु गंभीरतापूर्वक सोचा जाना चाहिए, ताकि छात्र जीवन में ही भारत के भावी नागरिक पर्यावरण के प्रति सचेष्ट और जागरूक नागरिक बन सकें । मानवप्रजाति द्वारा इस पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों के अपरिमित दोहन और मानवजनित भयंकर प्रदूषण से अब तक इस पृथ्वी और पर्यावरण की अकथनीय व अपार क्षति हो चुकी है, पर्यावरण को हो चुकी इस अपूरणीय क्षति की क्षतिपूर्ति के लिए ज्यादे से ज्यादे वृक्षारोपण करना, वनों का कम-से-कम विनाश, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का कम-से-कम प्रयोग, दीपावली-ईद-दशहरा-क्रिसमस आदि त्योहारों पर, जिनमें प्रायः भयंकर आतिशबाजी की जाती है, उन सभी पर धीरे-धीरे ही सही, परन्तु बगैर किसी धार्मिक वैमनस्यता के साथ, समदर्शी भाव से सरकारों को प्रतिबंधित करने की कानूनी कार्यवाही सुनिश्चित करनी ही चाहिए, सड़क पर चलनेवाली गाड़ियों में पेट्रोल-डीजल की जगह सौर उर्जा, विद्युत उर्जा का अधिकाधिक उपयोग करने को प्रोत्साहन देना तथा यूरोप के विकसित और समृद्ध देशों की तर्ज पर व्यक्तिगत कारों की जगह सार्वजनिक परिवाहनों यथा विद्युतचालित बसों, ट्रामों, मेट्रो व रेल को अधिकाधिक बढ़ावा देना ही होगा। अन्य उद्योग-धंधों में, सौर ऊर्जा, वायु उर्जा, पशु उर्जा, समुद्रों में उठने वाली ज्वार-भाटों से संग्रहित उर्जा या अन्य किसी भी गैर परंपरागत वैकल्पिक उर्जा का उपयोग करना, वातानुकूलन, फ्रिज आदि के प्रयोग से, जिससे हमारे प्राणरक्षक ओजोन छतरी को अत्यधिक नुकसान करने वाली गैस क्लोरोफ्लोरोकार्बन का उत्सर्जन होता है, की जगह हमारे वैज्ञानिकों को किसी अन्य विकल्प पर अपना ध्यान केन्द्रित करके उक्त वातानुकूलन उपकरणों को कम-से-कम प्रयोग करना ही होगा और ऐसे उपाय आजमाने ही होंगे, जिससे क्लोरोफ्लोरोकार्बन का उत्सर्जन कम से कम हो । मनुष्यप्रजाति द्वारा किये जाने वाले अत्यधिक प्रदूषण के दुष्परिणामस्वरूप वैज्ञानिकों के अनुसार हमारी जीवनदायिनी नदी गंगा के उद्गमस्थल गंगोत्री तक के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है । गंगा की उद्गम ग्लेशियर जिसे गोमुख हिमशिला कहते हैं, को पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार, मनुष्य जनित भयंकर प्रदूषण से उत्पन्न ग्लोबल वार्मिंग से पिछले वर्ष और इस वर्ष के मात्र एक साल की अवधि के कम अन्तराल में ही बहुत बुरा असर पड़ा है, जहाँ पिछले वर्ष गोमुख हिमशिला की ऊँचाई 80 मीटर थी इस वर्ष केवल 30 मीटर रह गई है । इसी से गंगा के जीवन की भविष्यवाणी सहज ही लगाई जा सकती है। इसलिए हमें गंगा सहित भारत की सभी नदियों को बचाने हेतु ईमानदारी से प्रयास करने ही होंगे।
इसके अतिरिक्त पर्यावरण संरक्षण के किसी भी पावन प्रयास के रास्ते में किसी भी तरह की धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक आदि क्षुद्र मानसिक स्वार्थ का अवरोध नहीं आना चाहिए। यह प्रकृति और धरती माँ बिना किसी भेदभाव के अपने संसाधनों को सभी के लिए उपलब्ध कराती है । धर्म और जाति के आधार पर वैमनस्यता फैलाने वाले कुछ कलुषित मानसिकता वाले लोग इस धरती माँ और इसके समस्त जीवों को बचाने वाले प्रयास की भी आलोचना करते हैं । इसकी जोरदार भर्त्सना होनी ही चाहिए । सरकार अगर वास्तव में इस धरती के स्वच्छ पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्ध, ईमानदार और जागरूक है, तो उसे पटाखे, फुलझड़ियाँ और आतिशबाजी आदि बनाने वाले कारखानों का लाइसेंस रद्द करने ही होंगे, उसमें लगे मजदूरों को किसी अन्य उद्योग-धंधों में स्थानांतरित करके उनकी रोजी-रोटी की सुनिश्चित व्यवस्था भी करनी होगी। इसी में हमारी माँ तुल्य इस धरती, इसके पर्यावरण, इस पर जीवन के स्पंदन से युक्त समस्त जैवमण्डल, जिसमें हम मानवप्रजाति भी सम्मिलित हैं, आदि सभी की भलाई अंतर्निहित है, हम इस धरती के सबसे बुद्धिमान प्राणी मनुष्य को यह निश्चितरूप से अब सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि इसके अलावे कोई अन्य विकल्प भी नहीं है।
— निर्मल कुमार शर्मा