/ मानवता के जग में …./
भक्त नहीं बनूँगा मैं
किसी का और
स्वीकार नहीं करूँगा
कुटिल तंत्र के स्वामित्व का
अंध परंपरा का अनुकरण
अमानवीय तत्वों का समर्थन
मैं कभी नहीं करूँगा
मेरी अपनी कार्यशाला है
इस मस्तिष्क में
विचार, तर्क करता हूँ,
चलाता हूँ मैं
अपनी बुद्धि को
सत्य – तथ्य का
नीर – क्षीर विवेचन जो
मैं भी लेता हूँ
जिस बुनियाद पर मैं
खड़ा हूँ, देखता हूँ दुनिया को
अपने चक्षु से
उनके प्रति श्रद्धा अवश्य
मैं अपने दिल से लगाता हूँ
उस गुरू परंपरा को
वंदना करता हूँ विनम्रता से
विश्व कल्याण की आशय साधना में
अपने को अहर्निश समर्पित हुए हैं
समता, भाईचारा, स्वतंत्रता के पक्ष में
वाणी बनकर मैं भी
मानव की बात करता हूँ।