मुक्तक/दोहा

प्रिये गङ्गा सी तुम आना…

हृदय की धड़कनों में तुम मेरी हर सांस हो जाओ,
जेठ की तुम दुपहरी में, सावनी आस हो जाओ,
मनु सा बनके भटका हूँ, यहाँ जीवन – थपेड़ों से,
श्रद्धा बनके तुम मेरी, सदा विश्वास हो जाओ।01

मोगरा सी महक बनकर, मेरे जीवन में तुम आना,
मलयाचल से चलकर तुम, समीरण सी चली आना,
मरुस्थल सा मेरा जीवन सदा सैकत सा फैला है,
मैं भागीरथ सा बैठा हूँ, प्रिये गङ्गा सी तुम आना।02

सजल मीन से नयन तुम्हारे चितवन चपल मयूर सी,
अधरों पर मुस्कान मनोहर शुभ्र चन्द्र के नूर सी,
छोटी सी बिंदिया माथे पर ध्रुव तारे सी दमक रही,
इंद्रजाल की तुम माया सी या जन्नत के हूर सी।03

डॉ. शशिवल्लभ शर्मा

विभागाध्यक्ष, हिंदी अम्बाह स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, अम्बाह जिला मुरैना (मध्यप्रदेश) 476111 मोबाइल- 9826335430 ईमेल[email protected]