गीत/नवगीत

नवगीत – राजा बड़ा शिकारी है

इस जंगल का
राजा भइया
बड़ा शिकारी है
उल्टा-सीधा पाठ पढ़ाकर
बाजी मारी है
मद में डूबा
रहता हरदम
पीकर मद प्याला
जिसने भी
मुंह खोला उसके
जड़ देता ताला
परजा जंगल की उसकी
चालों से हारी है
बड़े प्यार से
बतियाता है
वह दुलराता है
ज़हर घोलता है
आपस में
खूब लड़ाता है
रहता साथ मगर वह रखता
साथ कटारी है
गिरगिट जैसे
रंग बदलता
कलाकार धाँसू
झूठ-मूठ के
ढरकाता है
घड़ियाली आँसू
रग-रग में तो भरी हुई
उसके मक्कारी है
समझ गये
सब धीरे-धीरे
ढोंगी की गलती
शुरू हो गई है
ज़ुल्मी की
अब उल्टी गिनती
अब विरोध में उसके दिखता
जनमत भारी है
         *
~जयराम जय

जयराम जय

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