कविता
ख़्वाबों की दहलीज पर खींची हुई एक रेखा हैं।
जिसके एक ओर अपने,एक ओर सपनों को देखा है।।
आसान नहीं डगर बड़ी ही कंकरीट,पथरीली होती हैं।
दिखे ना जो किसी को वो छाले पड़ते देखा है।।
हर वो खाली पन्ना भरना है अपनी कलम से।
किस्मत की रेखा बदलनी है अपने कर्म से।।
तुम आजाद हो अपनी मंज़िल और रास्ते ख़ुद चुनो।
मायने तुम्हारी कामयाबी के,क्यू लिखे ज़माना जाता है।
सपने बुनो,ख़्वाब संजाओ,ख़ुद से उम्मीद भी करो।
उचित है डर लगना,डर जाने में क्या जाता है।।
रख अर्जुन सी पैनी नज़र,लक्ष्य अपना पूरा करना।
फहराकर विजय पताका,अपना सपना पूरा करना।।
सविता जे राजपुरोहित