चार दिन की चाँदनी….!
अमर एक तीस वर्षीय युवा ऑटो रिक्शा चालक था। ऑटो चलाकर किसी तरह गृहस्थी की गाड़ी खींचनेवाला अमर सहृदय होने के साथ ही अक्सर मशहूर होने के सपने देखा करता था।
कोरोना की दूसरी लहर में जब हालात बेकाबू हो गए, अस्पतालों में मरीजों को इलाज, बेड व ऑक्सीजन की भारी कमी के साथ ही एम्बुलेंस की भी भारी कमी महसूस की जा रही थी।
ऐसे में सहृदय अमर ने लोगों की सेवा करने के लिए एक अनोखा फैसला कर लिया और पत्नी के गहने बेचकर उसने ऑक्सीजन सिलेंडर व कनेक्टर की व्यवस्था करके अपनी ऑटो को ही एम्बुलेंस में बदल दिया और जरूरतमंदों को मुफ्त में अस्पताल पहुँचाने का बेहद सराहनीय कार्य करने लगा।
उसके इस सराहनीय कार्य को सोशल मीडिया पर खूब सराहा गया और देखते ही देखते वह पूरे देश में मशहूर हो गया। उसके इस मानवीय प्रयास की सबने मुक्तकंठ से प्रशंसा की।
उत्साहित अमर अपना सपना पूरा होने से बेहद खुश था और जी जान से कोरोना पीड़ितों की सेवा में जुटा हुआ था कि एक दिन किसी मरीज को घर से लेने जा रहे अमर को लॉक डाउन का उल्लंघन करने के आरोप में दंडित कर दिया गया।
दंड भर कर किसी तरह घर पहुँचा अमर बेहद आहत महसूस कर रहा था और सोच रहा था ‘क्या सोशल मीडिया पर उसकी वाहवाही चंद दिनों के लिए ही थी ? यानी चार दिन की चाँदनी ..फिर अँधेरी रात !’