हरिगीतिका छंद “भैया दूज”
(हरिगीतिका छंद)
तिथि दूज शुक्ला मास कार्तिक, मग्न बहनें चाव से।
भाई बहन का पर्व प्यारा, वे मनायें भाव से।
फूली समातीं नहिँ बहन सब, पाँव भू पर नहिँ पड़ें।
लटकन लगायें घर सजायें, द्वार पर तोरण जड़ें।
कर याद वीरा को बहन सब, नाच गायें झूम के।
स्वादिष्ट भोजन फिर पका के, बाट जोहें घूम के।
करतीं तिलक लेतीं बलैयाँ, अंक में भर लें कभी।
बहनें खिलातीं भ्रात खाते, भेंट फिर देते सभी।
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गीतिका / हरिगीतिका छंद विधान:-
गीतिका छंद:- ये चार पदों का एक सम पद मात्रिक छंद है। प्रति पंक्ति 26 मात्राएँ होती हैं तथा प्रत्येक पद 14-12 अथवा 12-14 मात्राओं की यति के अनुसार होता है।
इसका वर्ण विन्यास निम्न है।
2122 2122 2122 212
चूँकि गीतिका एक मात्रिक छंद है अतः गुरु को आवश्यकतानुसार 2 लघु किया जा सकता है परंतु 3 री, 10 वीं, 17 वीं और 24 वीं मात्रा सदैव लघु होगी। अंत सदैव गुरु वर्ण से होता है। इसे 2 लघु नहीं किया जा सकता।
चारों पद समतुकांत या 2-2 पद समतुकांत।
हरिगीतिका छंद:- इसकी भी लय गीतिका वाली ही है तथा गीतिका के प्राम्भ में गुरु वर्ण बढ़ा देने से हरिगीतिका हो जाती है। यह चार पदों का एक सम पद मात्रिक छंद है। प्रति पंक्ति 28 मात्राएँ होती हैं तथा यति 16 और 12 मात्राओं पर होती है। यति 14 और 14 मात्रा पर भी रखी जा सकती है।
गुप्त जी का उदाहरण देखें:-
मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती
भगवान! भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती।
गीतिका में एक गुरु बढ़ा देने से इसका वर्ण विन्यास निम्न प्रकार होता है।
2212 2212 2212 2212
चूँकि हरिगीतिका एक मात्रिक छंद है अतः गुरु को आवश्यकतानुसार 2 लघु किया जा सकता है परंतु 5 वीं, 12 वीं, 19 वीं, 26 वीं मात्रा सदैव लघु होगी। अंत सदैव गुरु वर्ण से होता है। इसे 2 लघु नहीं किया जा सकता।
चारों पद समतुकांत या 2-2 पद समतुकांत।
इस छंद की धुन “श्री रामचन्द्र कृपालु भज मन” वाली है।
एक स्वरचित उदाहरण:-
मधुमास सावन की छटा का, आज भू पर जोर है।
मनमोद हरियाली धरा पर, छा गयी चहुँ ओर है।
जब से लगा सावन सुहाना, प्राणियों में चाव है।
चातक पपीहा मोर सब में, हर्ष का ही भाव है।।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया