मीन-मेख
महोदय/महोदया,
उनके अश्क़ सही,
उसके अश्क़ नहीं !
पोछें सही,
पोंछा नहीं !
मुहब्बत
या मोहब्बत होंगे,
मुहोबत नहीं !
क्या करें ?
क्या करे नहीं !
‘सदा कर कृपा’ नहीं,
अपितु ‘कृपा सदा’..
‘रखे दृष्टि’ नहीं,
‘रखेंगे दृष्टि’..
‘माँ की धुन’ से
क्या आशय है ?
मन की बातें,
न कि मन की बात !
कुछ ऐसे होते हैं,
मीन-मेख !
जिसे देखने होते हैं !
हाँ, शेष हैं बेहतर।
इसे अन्यथा नहीं लेंगे !
शेष कुशल प्रस्तुति।
और सादर कृपया।