ग़ज़ल
मोहब्बत हो गयी जिनको फ़सानों पर नहीं चलते |
बिछे हो राह में कांटे शरारों पर नहीं चलते |
सितम कितने भी ढाये लाख ठुकराये जमाना यह –
मोहब्बत करने वाले सब दिमागों पर नहीं चलते |
ये नाते ज़िंदगानी के निभाने से ही निभते हैं –
ये मसले ज़िन्दगी के हैं दलीलों पर नहीं चलते |
अजब दीवानगी इनकी अजब ही हाल है इनका-
अरे ये इश्क के मारे उसूलों पर नहीं चलते |
हजारों मुश्किलें सहकर नया उन्वान रचते हैa –
पुरानी तंग गलियों सी लकीरों पर नहीं चलते |
बिना पर के बपरिंदे ये मगर ऊँची उड़ाने हैं-
मगर बेख़ौफ़ उड़ते है ज़मीनों पर नहीं चलते |
मोहब्बत की रियासत में मोहब्बत की हैं जागीरें –
नियम कानून भी अक्सर अमीरों पर नहीं चलते |
— मंजूषा श्रीवास्तव