गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मोहब्बत हो गयी जिनको फ़सानों पर नहीं चलते |
बिछे हो राह में कांटे शरारों पर नहीं चलते |

सितम कितने भी ढाये लाख ठुकराये जमाना यह –
मोहब्बत करने वाले सब दिमागों पर नहीं चलते |

ये नाते ज़िंदगानी के निभाने से ही निभते हैं –
ये मसले ज़िन्दगी के हैं दलीलों पर नहीं चलते |

अजब दीवानगी इनकी अजब ही हाल है इनका-
अरे ये इश्क के मारे उसूलों पर नहीं चलते |

हजारों मुश्किलें सहकर नया उन्वान रचते हैa –
पुरानी तंग गलियों सी लकीरों पर नहीं चलते |

बिना पर के बपरिंदे ये मगर ऊँची उड़ाने हैं-
मगर बेख़ौफ़ उड़ते है ज़मीनों पर नहीं चलते |

मोहब्बत की रियासत में मोहब्बत की हैं जागीरें –
नियम कानून भी अक्सर अमीरों पर नहीं चलते |

— मंजूषा श्रीवास्तव

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016