कविता

मैं क्या हूँ!

मैं क्या हूँ!कुछ नहीं!
बस! एक मरीज हूँ
जिसके साथ भावना नहीं
डॉक्टर के लिए पैसा हूँ।
समाज का अपराधी
जो छुपकर बैठा हूँ
साँसों की तंग गली में।
मैं नीच हूँ! मैं कीच हूँ!
नहीं भटकता पास कोई
कलंक का डर नहीं मुझे
अपने भी कैसे कमल
मैं दुष्ट हूँ!मैं कुष्ट हूँ!
बना हुआ सिर दर्द हूँ
दवा नहीं है कोई मेरी
उपाय क्या बचाव का!
उलझता नहीं भाग्य से
कर्म करते जा रहा हूँ!
आ रहा हूँ पास काल के
फिर भी जीता जा रहा हूँ
हैं पैमानें चाल केे
दुनिया के दिमाग के
नापता हूँ खुद को ही
हर किसी की चाल से।
पातक हूँ मैं! घातक हूँ!
विचार का आतंक हूँ
पला ठोकरों के रस में
मूर्खता का पर्याय हूँ मैं
शब्द की भरमार हूँ मैं।

ज्ञानीचोर

शोधार्थी व कवि साहित्यकार मु.पो. रघुनाथगढ़, जिला सीकर,राजस्थान मो.9001321438 ईमेल- [email protected]