कविता

सावन आया

सावन आया हरियाली छाई
रिमझिम- रिमझिम वर्षा ऋतु आई
देख मोंर पपहिया नाचन लागे
कोंयल और मेंढक की अवाजें पड़ी सुनाई
सावन माह में आया तीज का त्योंहार
मिल- झुल सखियाँ मनाती हैं ये त्योहार
न कोई मन मुटाव , न कोई भेंद- भाव
सिखलाते हैं यही हमारे संस्कार
इस तीज के पावन अवसर पर
लगने लगी सावन की फुहार
घेवर की दुकानों पर हैं सजावटे
देख इसे दिल झुम उठे लेकर बहार
सावन में ही झूला झुले जाते है
तन- मन सभी के खिल जाते हैं
देख रंग- बिरगें परिधानों में
हम सब के मन को भाते हैं
— कल्पना गौतम

 

कल्पना गौतम

उत्तर प्रदेश की निवासी हैं। हिन्दी में पीएचडी कर रही हैं।