गुरु पूर्णिमा
* गुरुब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:, गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:*
जीवन में गुरु का स्थान कोई नहीं ले सकता. गुरु को साक्षात ईश्वर कहा गया है. यहाँ तक कि उन्हें भगवान से भी श्रेष्ठ माना गया है. गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का स्वरूप माना जाता है.
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं, जो की इस बार 24 जुलाई को पड़ रही है. इस दिन गुरु पूजा का विशेष विधान है. गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है. इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की वर्षा करते हैं. ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं, न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी. इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं .जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है.
गुरु का आशीर्वाद नित्य ही लेने का प्रयास करना चाहिए. शास्त्रों में गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरुजनों को समर्पित है. हिंदू धर्म में गुरु को ईश्वर से भी अधिक पूज्नीय माना गया है.गुरु की महत्ता को देखते हुए ही महान संत कबीरदास जी ने लिखा है- “गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाये.” यानि एक गुरू का स्थान भगवान से भी कई गुना ज्यादा बड़ा होता है.
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक. गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है. अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है.
“अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया,चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः ”
अवधूत चिंतन श्री गुरुदेव दत्त.