/ दीयट बनकर जलता हूँ मैं /
जहाँ सत्य है
न्याय की बात है
षड्यंत्र नहीं रचते हैं
दूसरे का अधिकार नहीं छीनते
उस जग की मैं
वंदना करता हूँ
जहाँ अन्याय है
अधर्म की सत्ता है
एक दूसरे का मान नहीं करते हैं
मनुष्य की बात नहीं करते
धिक्कारता हूँ उसे मैं
विरोधी बनता हूँ
जहाँ दूसरे की उन्नति पर ईर्ष्या है
जातीयता का दंभ है
अंधे से धर्म शास्त्र को मानते हैं
विचारों की होती नहीं उन्नति
परिश्रम का होता नहीं मूल्य
दीयट बनकर मैं
जलता रहता हूँ।