कविता

/ दीयट बनकर जलता हूँ मैं /

जहाँ सत्य है
न्याय की बात है
षड्यंत्र नहीं रचते हैं
दूसरे का अधिकार नहीं छीनते
उस जग की मैं
वंदना करता हूँ

जहाँ अन्याय है
अधर्म की सत्ता है
एक दूसरे का मान नहीं करते हैं
मनुष्य की बात नहीं करते
धिक्कारता हूँ उसे मैं
विरोधी बनता हूँ

जहाँ दूसरे की उन्नति पर ईर्ष्या है
जातीयता का दंभ है
अंधे से धर्म शास्त्र को मानते हैं
विचारों की होती नहीं उन्नति
परिश्रम का होता नहीं मूल्य
दीयट बनकर मैं
जलता रहता हूँ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।