गड़बड़झाला क्यों ?
“सिर्फ एक चम्मच से आप
‘खीर’ भी परोस सकते हैं,
तो मटन या चिकेन भी !
वही हालत ‘चमचे’ की है,
एक चमचा
कई ‘नेताओं’ के साथ
जुड़े होते हैं !
तो वहीं कोई भी सीएम
‘राजा’ नहीं है,
अपितु ‘प्रजासेवक’ है !”
एक राज्य में बाढ़ ने अपना कुरूपता दिखाने शुरू किए और वहाँ के सीएम साहब ने राज्य के पोखरों व तालाबों के सर्वेक्षण शुरू किए । ये तो यही हुई, पानी माँगने पर राजा कहते हैं- कुंआ खोदा जा रहा है । ये माननीय अपने को सेवक नहीं समझते ! लेक्चरर की बहाली में रोज नए नियम जोड़-जोड़ कर समय टाल रहे हैं। मेरा नेट निकाले 13 साल हो गए , 2014 में लेक्चरर हेतु वैकेंसी भरा, 2019 में कट-ऑफ से ज्यादा मार्क्स पाकर भी फेल कर दिया गया, इस क्रम में तीसरा मुख्यमंत्री और 4 शिक्षा मंत्री के अलग-अलग फरमान से उम्र घट रहा है । बिना लेक्चरर के यूनिवर्सिटी में पढ़ाई से सरकार को लेक्चरर को देने वाले पैसे तो बच रहे हैं। इस राज्य में धड़ाधड़ इंजीनियरिंग संस्थान खोले जा रहे हैं, परंतु वहाँ एक भी लेक्चरर नहीं है !
कैसे AICTE उसे मान्यता दे देते हैं ? बिना लेक्चरर के पास ऐसे बी टेक, जिसे प्रैक्टिकल कुछ भी नहीं आता है, इसे ही गेस्ट लेक्चरर बना कर पॉलिटेक्निक संस्थान को भेजा जाता है । काफी संख्या में नये-नये विद्यालय खोल लिए , लाखों शिक्षक बहाल कर लिए और उनके नाम दे दिए- नियोजित, फिर कहा- यह परमानेंट टीचर हैं, कॉन्ट्रैक्टवाले नहीं, किन्तु शिक्षा विभाग यह मानते हैं कि ऐसे शिक्षक सरकारी सेवक है ही नहीं ! यह क्या गड़बड़झाला है ! सेवाशर्त्त नियमावली सिर्फ चुनावी है, सब्जबाग लिए !
आप जनाब अपने कर्मी वेतन सही समय दे नहीं पाते हैं, एडवांस वेतन-भुगतान की बात ही छोड़िए और गुणवत्तापरक शिक्षा देने की उनसे अपेक्षा रखते हैं ! उस शिक्षक को जो एम ए पास हैं, उनकी जांच जीविका दीदी से करवा रहे हैं यानी विद्वता का कोई प्रोटोकॉल नहीं होता है, क्या, राजा साहेब ? लेकिन हम भी मतदाता हैं और हमारे सामने किसी माननीय की हैसियत सेवक की है, स्वामी की नहीं ! भारतीय संविधान को ‘हम भारत के लोग’ ने अधिनियमित किया है । राजा बनने का प्रयास मत कीजिये । राजाओं के ऐसे अहम् उन्हें खालिश मान-मर्दन करता है !