सिस्टम से बाहर
जो सिस्टम से बाहर जायेगा…..
अपनी अलग एक सोच रखकर।
भीड़ की मूर्खता से टकरायेगा।
सिस्टम की मशीन में,
सबसे पहले वहीं काटा जायेगा।
जो सिस्टम से बाहर जायेगा…..
भेड़ -बकरी की सोच रख,
और झुंड में ही जो जीवन बितायेगा।
अपनी -अपनी दुनिया में मस्त होकर।
भीड़- सा व्यस्त जो नही रह पायेगा।
नयी सोच से जब- जब भी ,
दुनिया को तू जगायेगा।
यह दुनिया वैसे ही चलेगी।
बस तू सिस्टम से कटकर ,
सदा की नींद सो जायेगा।
जो सिस्टम से बाहर जायेगा…..
इस भीड़ की अपनी दुनियां है,
तू किस -किस को समझायेगा।
बहुत आयें बदलने इसको,
लेकिन नई सोच दे नही पायें है।
जिस -जिस ने भी सिर उठाया है।
सिस्टम की मशीन से ,
खुद को कटा हुआ पाया है।
— प्रीति शर्मा “असीम”