गीत/नवगीत

गीत – जिओ ज़िन्दगी

साज़ का तार बनकर जिओ ज़िन्दगी।
एक झंकार बनकर जिओ ज़िन्दगी।
बोझ बनकर जिए तो भला क्या जिए,
एक उपहार बनकर जिओ ज़िन्दगी।।

चूर थककर हुआ पर सफ़र में रहा।
जिस्म चलता हुआ हर नजर में रहा।
हाथ आ ही न पाए किनारे कभी,
ज़िन्दगी का सफ़ीना भँवर में रहा।
उम्र की सीढ़ियों ने सिखाया यही,
एक पतवार बनकर जिओ ज़िन्दगी।।

ठीक है, गलतियाँ हो गई हैं कई।
हाथ से कामयाबी फिसल भी गई।
जब खुली आँख, समझो सवेरा हुआ,
और फिर से शुरूआत कर लो नई।
ग्लानि के भाव से मुक्ति पाते हुए,
इक नवाचार बनकर जिओ ज़िन्दगी।।

क्या करें जब सभी मतलबी हो गए।
मीत भी आजकल अजनबी हो गए।
लोग यूँ हो लिए साथ बदलाव के,
छोड़ इन्सानियत, मज़हबी हो गए।
विश्व-बंधुत्व का भाव क़ायम रहे,
एक परिवार बनकर जिओ ज़िन्दगी।।

— बृज राज किशोर “राहगीर”

बृज राज किशोर "राहगीर"

वरिष्ठ कवि, पचास वर्षों का लेखन, दो काव्य संग्रह प्रकाशित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवं साझा संकलनों में रचनायें प्रकाशित कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ सेवानिवृत्त एलआईसी अधिकारी पता: FT-10, ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ-250001 (उ.प्र.)