देहाती दुनिया के लेखक
आचार्य शिवपूजन सहाय के जन्मदिवस पर सादर नमन ! दुनिया के पहले आंचलिक उपन्यास ‘देहाती दुनिया’ के लेखक “शिवपूजन सहाय” के जन्मदिवस पर सादर नमन ! दुनिया को ‘आँचलिकता’ से रूबरू करानेवाले हिंदी के पहले उपन्यासकार शिवपूजन सहाय थे।
उनकी औपन्यासिक कृति ‘देहाती दुनिया’ की प्रथम पांडुलिपि लखनऊ में गायब हो गई थी, फिर उन्होंने ‘देहाती दुनिया’ की दूसरी पांडुलिपि लिखा, किन्तु संतुष्ट नहीं होने के बावजूद 1926 में यह उपन्यास प्रकाशित होते ही छा गया।
देहात, बज्जिका तथा ‘और भी स्थानीय भाषा’ सहित साम्प्रदायिक सद्भाव का उन्नत और उत्तम मिसाल लिए ‘देहाती दुनिया’ पहला आँचलिक उपन्यास है। जबकि फणीश्वरनाथ रेणु की ‘मैला आँचल’ 1954 में प्रकाशित हुई थी, वो तो लेखकीय गुटबाजी के कारण व डॉ. धर्मवीर भारती से मिली प्रशंसा से ही ‘मैला आँचल’ ने ‘देहाती दुनिया’ की आँचलिकता को खारिज कर दिया !
जबकि ‘देहाती दुनिया’ हिंदी का प्रथम आँचलिक उपन्यास है । तारीख 9 अगस्त को ‘बिहार राष्ट्रभाषा परिषद’ के प्रथम निदेशक रहे आचार्य शिवपूजन सहाय की जयंती है। सादर नमन।
वहीं बिहार (मनिहारी) से विरार (मुम्बई) तक का सफ़र ! हिंदी फ़िल्मों में पहचान बनाने के सोद्देश्य हाईस्कूली मित्र श्री प्रभाष कवि; जो दो दशक पहले ही अच्छी और सच्ची कद-काठी लिए मनिहारी से अभिनेता गोविंदा के ‘विरार’ पहुँच गए हैं, फिर उनकी फ़िल्माई संघर्ष-गाथा शुरू !
कई फ़िल्मों के लिए प्रभाष जी ने गीत-लेखन कार्य किए हैं ! मराठी फिल्मों के लिए भी इसके प्रसंगश: कार्य किए हैं! उन्हें गीतकार के रूप में यूट्यूब पर देखा-सुना जा सकता है। पुस्तकद्वय ‘पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद’ और ‘लव इन डार्विन’ के साथ श्री प्रभाष कवि !
आशा है, उनके संघर्षों में शीघ्र ही विराम लगेंगे और वे स्थापित गीतकार के रूप में शीघ्र ही पहचाने जाएंगे और फिर से फ़िल्मी क्षेत्र के रूप में ‘मनिहारी’ देश-दुनिया के मानचित्र में आबद्ध होंगे, मेरी अशेष शुभकामना है, मित्र !