मँझोली कविता
कीचड़ में
सनकर जहाँ,
गंदे होते रहे
सूअर;
उसी कीचड़ में
कमल तो,
खिलते रहे सुंदर !
सूई के गिरने से-
धरती नहीं हिलती;
पर खड़ी सूई पर
गिर जाए कोई,
उसे नानी
याद आ जाती !
ऐसे मित्र भी हैं,
जो इस प्रत्याशा में
परीक्षा में
शामिल नहीं होते
कि उनकी तैयारी
पूरी नहीं हुई है !
..और शायद
ताउम्र
होगी भी नहीं !