लघुकथा

सदा के लिए

प्राजक्ता ने आज आखिरी साँस ली है। एक झटके में सबको अलविदा कह दिया। प्राजक्ता ने, मरने से कुछ ही समय पहले फोन कर बताया। ये दीवानापन, उससे पता नही क्या क्या करवा रहा था? प्रांजल उसका पति, उसके बचपन का दोस्त था। कक्षा चार में बैठकर, डेस्क पर कंपास से, अगलबगल लिखा नाम, कब दोस्ती से धीरे धीरे प्रेम में परिवर्तित होने लगा, उन्हें भी पता ना चला। एक-दूसरे की ऊर्जा व गर्माहट से पुलकित, इस संबंध की परिणिति, विवाह में हो गई।

समय अपनी गति से चलता रहा। प्राजक्ता ऑफिस की कैब में, कदम बढ़ा बैठने वाली थी कि, गश खाकर गिर गई। आननफानन में ड्राइवर ने प्रांजल को फ़ोन लगा, स्थिति से अवगत करा, पास के अस्पताल पहुँचाया। प्रांजल, बीस मिनिट में पहुँचा। प्राजक्ता बेहोश थी। मन में अजीब से मिश्रितभाव हिलोरे लेने लगे। डॉक्टर ने कुछ तीन घंटे बाद। सभी चिकित्सीय टेस्ट व परामर्श कर। प्रांजल को अपने केबिन में बुलाया। इससे पहले डॉक्टर कुछ कहते, प्रांजल बोला,”क्या मैं पापा बनने वाला हूँ??”

उस क्षण, डॉक्टर की ज़बान भी, बँधी सी महसूस हुई। प्राजक्ता को स्टेज तीन का कैंसर हुआ था। प्रांजल का जतन से बनाया रेत का किला, समंदर की तेज़ लहर से ढह गया। प्राजक्ता को डिस्चार्ज करा घर ले आया है, प्रांजल। धीरे धीरे दोनों सहज होने का प्रयत्न कर रहे थे। अतीव पीड़ा, तमाम दवाई, आये दिन डॉक्टर के चक्कर। कहाँ कुछ सामान्य होने दे रहे थे??

प्राजक्ता ने हिम्मत दिखाई। उसके हिसाब से, प्रांजल, मासूम, पढ़ाकू। उसके आसपास जीने वाला उनतीस साल का जवान पुरुष था। खुद को वरीय समझता ही नही था। प्राजक्ता से अथाह प्रेम करता था। जो कुछ वह करती, उसी में, घुलमिल जाता। अपने लेक्चरर के पेशे के प्रति अति उत्साही था। प्रांजल अकेला हो जाएगा। ये सोचकर, भावी जीवनसाथी की खोज शुरू कर दी। पहले आसपास, मतलब, ऑफिस और दोस्तों में टटोला। कुछ लोगों से बात चलाई। सब उसकी भावनाओं पर निरीहता दर्शाते। ढाढ़स बँधा बात को मज़ाक समझ, आई गई बना देते।

जब उसकी अवस्था और बिगड़ने लगी। शारीरिक रूप और कमज़ोर होने लगा। दर्द जो बर्दाश्त नहीं होता। एक दिन अपने मन की सारी बात, गुस्से में, प्रांजल से कह दी। “तुम मेरी आँखों के सामने किसी को अपना लो, तभी मैं चैन से मर सकूँगी”।

प्रांजल आँखों में आँसू भर वहाँ से चला गया। कुछ देर बाद लौटा तो प्राजक्ता सो गई थी। एक छोटे से कागज़ पर कुछ लिख, सिरहाने छोड़ दिया। सुबह प्राजक्ता ने आँख खोली, नोट पढा। किसी तरह उठ कर हॉल में आई। प्रांजल की गोदी में, सिसकती हुई लेट गई। थोड़ी ही देर में तबियत बिगड़ी। अस्पताल पहुँचने से पहले ही नब्ज़ बन्द हो गई। चैन सुकून का तो पता नही। प्राजक्ता के हाथ से वो नोट लेकर पढा। मेरा संतोष चरम पे था।

नोट में लिखा था,” I luv u forever n ever.. सदा के लिए. तुम्हारी जगह कोई, कभी नहीं ले सकता। तुम्हारे साथ अब तक का जीवन, उपहार है। c u soon on the other side.”

— कंचन शुक्ला

कंचन शुक्ला

उम्र 39साल। मैं मूलतः उत्तरप्रदेश, जिला लखनऊ की निवासी हूँ। मैंने एम कॉम और सीए इंटरमीडिएट की शिक्षा ली है। प्राइवेट नौकरियाँ करने के बाद, लेखन में अभिरुचि होने के नाते, मैंने घर से ही कुछ लेखन सृजन का सोचा। गुजरात वैभव समाचार पत्र, गुजरात में हर रविवार मेरी लघुकथा प्रकाशित होती है। लघुकथावृत्त, कविताएँ काव्यमंजरी, साहित्य रचना में भी मेरा लेखन प्रकाशित हुआ है। कई ऑनलाइन प्लेटफार्म पर भी मेरी कृतियों को प्रेम और सराहना मिल रही है।