लघुकथा

पोल्स अपार्ट

रागिनी और मधुरिमा दोनों ऑफिस की पक्की सहेलियाँ हैं। सुबह से शाम, छः दिन, करीब नौ घंटे रोज़, एक दूसरे के आसपास बिताती। मेहनत से काम करती। खाली समय, ऑटो में आतेजाते, घरपरिवार की खूब सारी बातें करती। निरंतर एक विशेष मुद्दा उनके बीच सदा अपनी जगह बना लेता। दोनों को एकदूसरे के पति का व्यवहार, नज़रिया और तौरतरीके अच्छे लगते।

रागिनी खूब मनमौजी और बेपरवाह टाइप की थी। पर राग उसके पति, काफी सीरियस, सोच समझ वाले ज़हीन व्यक्ति थे। मधुरिमा यथार्थवादी, प्रतिभासंपन्न व अनासक्त व्यक्तित्व की मालकिन थी। वहीं मधुर उसके पति में, अभी भी कुछ बचपना बाकी था। मधुर को, सुबह जागने की आदत थी। राग, ऑफिस जाने के आधे घंटे पहले उठते। राग के पास नाश्ता करने का समय नही होता। मधुर को लेमन, ग्रीन और दूध की चाय के बाद, भरपूर बढ़िया नाश्ता चाहिए होता।

राग एक ही जान से प्यारी बेटी सान्वी की खूब देखभाल करते। मधुर बेटे यथार्थ पर, ज़्यादा ध्यान ना देते। राग थोड़ा बहुत गुटखा खाते। तो मधुर एक दो महीने में, दो पेग शराब के लगा लेते। उपहारों, सरप्राइज का आदानप्रदान, महत्त्व, जितना मधुर को आवश्य वी लगता। उतना ही मधुरिमा को इससे चिढ़ होती। उसे सब अपनी पसंद से लेना होता था। रागिनी बस तकती रह जाती। कभी तो कोई, रूमानी हावभाव राग भी दिखायें। पर उन्हें अपनी पसंद, किसी पर थोपना बेहद नागवार था।

मधुरिमा को खाना बनाने का कत्तई शौक नही था। पर मधुर को खाने का ऐसा शौक था, कि रोज़ कोई ना कोई, नई फरमाइश करता। फिर मन मारकर, यहाँ वहाँ देखकर पूछकर बना देती। चाहे जैसा खाना बनता, वह खूब वाहवाही करता।

वहीं रागिनी को खाने और बनाने का बड़ा शौक था। उसके ससुराल मायके वाले उसकी पाककला के फैन थे। आए दिन कुछ नया एक्सपेरिमेंट करती। रुचि से सान्वी और बाकी परिवार खाता। ऐसे में, रागिनी की राग से, प्रसंशा की आशा बढ़ जाती। पर हर बार नाकामी ही हाथ आती। कोई ना कोई कमी, वो निकाल ही देता।

पैसे-रूपये के मामले में मधुरिमा मधुर की एक ना सुनती। दिमाग व तरकीब लगा संचयन व निवेश करती। वहीं राग ने रागिनी से, कभी किसी आर्थिक मुद्दे पर, कोई सलाह नही ली थी।

राग और सान्वी दोनों को ही, घूमना फिरना देशविदेश जाने से बेहतर, कुछ ना लगता। पर रागिनी को, घरपरिवार के साथ समय बिताना रुचता। वहीं मधुरिमा घुमक्कड़ प्रवित्ति की महिला थी। पर मधुर और बेटे यथार्थ घर पर रह, अपनी ही दुनिया में रमे रहते।

मधुर गर्मी की छुट्टी आते ही मधुरिमा और यथार्थ की, मायके जाने के लिए टिकट कटवा देते, जैसे उनका जाना, उसके लिए कोई वरदान हो। रागिनी के मायके जाने के नाम से ही राग, घर के माहौल को दयनीय बना देते। रहने, खाने और तमाम तरह की दिक्कत गिनवाते।

इसी तरह के वार्ताक्रम में, मधुरिमा और रागिनी, मज़ाक में कभीकभार बोल भी देतीं, “पतियों को एक्सचेंज कर लेते हैं।”

कुलमिलाकर यह सब सुनते, कहते, जीते, हँसी आ जाती दोनों को। पर शायद यहीं ये कहावत चरितार्थ होती है। पोल्स अपार्ट।

— कंचन शुक्ला

कंचन शुक्ला

उम्र 39साल। मैं मूलतः उत्तरप्रदेश, जिला लखनऊ की निवासी हूँ। मैंने एम कॉम और सीए इंटरमीडिएट की शिक्षा ली है। प्राइवेट नौकरियाँ करने के बाद, लेखन में अभिरुचि होने के नाते, मैंने घर से ही कुछ लेखन सृजन का सोचा। गुजरात वैभव समाचार पत्र, गुजरात में हर रविवार मेरी लघुकथा प्रकाशित होती है। लघुकथावृत्त, कविताएँ काव्यमंजरी, साहित्य रचना में भी मेरा लेखन प्रकाशित हुआ है। कई ऑनलाइन प्लेटफार्म पर भी मेरी कृतियों को प्रेम और सराहना मिल रही है।