कविता

रुह

रंग रुप से इतर
अजर, अमर, अविनाशी
अविचल, अप्रभावी भाव लिए
मात्र एक भाव, अहसास है रुह।
संवेदना शून्य होती
सिर्फ भाव जगाती
जीवन जगाती,
सुख दुख, पीड़ा, शोक, खुशी,
मान अपमान, अपने पराये से मुक्त
हर मौसम में समभाव
हर परस्थिति में अप्रभावी है रुह।
कल्पनाओं, परिकल्पनाओं के
गोते लगवाती,
इस काया से उस काया में
विचरती रहती,
अपनी अहमियत का
अहसास कराती
कभी नजर नहीं आती
हर कोशिश के बाद भी
वर्तमान काया को
अलविदा कह ही देती,
हर जतन को निष्फल कर
ढेरों सवाल छोड़ जाती,
सिर्फ विमर्श का विषय रह जाती
चित्राभिव्यक्ति मुक्त है रुह।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921