आत्मकथाओं में कई दर्द
यह भारत की सबसे मेहनतकश जाति ‘कुम्हार’ (कुम्भकार) ! स्टील और चीनी मिट्टी के बर्त्तन ने इनके पेशे को चुनौती दे डाले। सुराही का स्थान फ्रीज़ ने ले लिया, किन्तु ‘कुल्हड़’ की चाय का क्या कहना ? इसे शिल्प समझें, क्योंकि ‘जाति’ तो एक कुप्रथा है।
एक विश्वविद्यालय से Ph D करने हेतु मेरे शोध-पत्र, जो लोकगाथा और अनुसूचित जाति के लेखकों की ‘आत्मकथाओं’ व साहित्य के प्रसंगश: था — को लेकर सवर्ण हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. सियाराम तिवारी, जो शांति निकेतन में डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य भी रहे थे — ने मुझे हद से ज्यादा ही परेशान किये, अंततः मैंने सिख गाइड मैडम के प्रसंगश: प्रथम वर्ष का प्रगति-रिपोर्ट जमा किया, किन्तु द्वितीय वर्ष ही मुझपर दबाव और परेशानी इतना बढ़ा कि मैं इसे झेल नहीं सका !
लालू प्रसाद ने बिहार में शिक्षकों को लेकर सर्वाधिक अत्याचार किए हैं ! मूलतः, 2 बार प्रतियोगिता परीक्षाओं के माध्यम से सिर्फ प्राइमरी शिक्षकों को चुने भी तो, किन्तु इनमें 50% से अधिक शिक्षक वे हुए, जिनके बदले कोई और बैठे थे ! लालू -राबड़ी के 15 वर्षों के कार्यकाल में पटना में सेटरों की संख्या ज्यादा बढ़ी। MY समीकरण के उम्मीदवार ही ज्यादातर आये ! वेकैंसी बंद हो गयी ? वो 34,540 शिक्षकों की भर्त्ती तो सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से नीतीश कुमार के शासनकाल में हो पाई ! लालू प्रसाद और राबड़ी देवी ने हाईस्कूल के शिक्षकों की बहाली तक नहीं किये।
शिक्षकों को वेतनमान और पेंशन जगन्नाथ मिश्र की देन है, तो लालू प्रसाद ने पहले ट्रेंड टीचर्स को खत्म किया, पेंशन खत्म किया । …. तो नीतीश कुमार ने टीचर्स का सबकुछ खत्म कर दिया ! बिहार के शिक्षकों के लिए लालू प्रसाद अगर ‘साँपनाथ’ है, तो नीतीश कुमार ‘नाथनाथ’ !
इधर तेजस्वी को भी तो 20 माह का अवसर मिला, मांझी को भी 9 माह का अवसर मिला । वे दोनों भी शिक्षक हित में कुछ नहीं कर पाए !
भारत की सबसे प्राचीन और प्रमुख शिल्पकार, जिनके बारे में ‘यजुर्वेद’ में उल्लेख है।
22 सितम्बर यानी आज
दिन -रात की अवधि बराबर
तो बराबर हो,
शुभ दिवस और शुभ रात्रि आज !
अपने मित्र श्री रूप सोनकर के FB पोस्ट से मैं तो चौंक ही गया कि ऐसा और जगह औरों के साथ भी हो रहा है।
विश्वविद्यालयों में ‘अनुसूचित जाति’ के लेखकों द्वारा लिखी गई ‘आत्मकथाओं’ और उपन्यासों पर शोध करते समय कुछ ‘सवर्ण’ गाईड इन अनुसूचित जाति के शोध छात्रों को जब बुलाते हैं, तो अपमानित करने वाले अंदाज में यानी उनकी शोध-पुस्तक के अनुसार उन्हें पुकारते हैं, यथा-
(1.) ए! ”जूठन” इधर आ!
[शोध-छात्र ‘जूठन’ आत्मकथा (लेखक : श्री ओमप्रकाश वाल्मीकि) पर शोध कार्य कर रहे हैं],
(2.) ए ! “मुर्दहिया” कहाँ जा रहा है ?
[शोध-छात्र ‘मुर्दहिया’ आत्मकथा (लेखक : डॉ. तुलसी राम) पर शोध कार्य कर रहा है],
(3.) ए! ”सूअरदान” क्लास के अंदर आ!
[शोध-छात्र ‘सूअरदान’ उपन्यास (लेखक : श्री रूप नारायण सोनकर) पर शोध कार्य कर रहा है].