लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 23)
जब पांडवों का दल वारणावत पहुँचा, तो वहाँ के नागरिकों ने उनका भव्य स्वागत किया। स्वागत करने वालों में पुरोचन भी था। उसने युवराज को सूचित किया- ”युवराज! आप सभी के निवास की व्यवस्था अभी पुराने महल में की गयी है, जिसे स्वच्छ करा दिया गया है। नवीन महल में अभी कुछ दिन का कार्य शेष है। पूरा होते ही आपको वहाँ ले जाया जाएगा।“ युधिष्ठिर को इसमें कोई आपत्ति नहीं थी। लेकिन उस महल में जाने से पहले वे चारों वर्णों- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र- की बस्तियों में जाकर उनसे मिले।
फिर वे पुरोचन के साथ उस महल में गये। वहाँ उनके निवास का अच्छा प्रबंध किया गया था। अतः वे आनन्दपूर्वक वहाँ रहने लगे। अपने समय का सदुपयोग वे नागरिकों से मिलने और आस-पास के स्थानों का निरीक्षण करने में करने लगे।
लगभग 10 दिन तक पुराने भवन में रहने के बाद पुरोचन ने उनको सूचित किया- ”युवराज! नवीन भवन, जिसका नाम ‘शिव भवन’ रखा गया है, अब पूर्णतः तैयार हो गया है। अब आप वहाँ निवास कर सकते हैं।“ युधिष्ठिर पुरोचन को यह संकेत नहीं देना चाहते थे कि उन्हें नये भवन के बारे में कोई आशंका है। इसलिए वे पुरोचन के कहने पर शिव भवन में रहने चले गये।
नये भवन के प्रबंध की जानकारी देकर पुरोचन उसी भवन में अपने कक्ष में चला गया। उसके जाने के बाद युधिष्ठिर ने नये भवन का निरीक्षण किया। देखकर ही वे समझ गये कि इस भवन का निर्माण अत्यन्त ज्वलनशील पदार्थों से किया गया है। हालांकि उस पर रंगीन मिट्टी का लेप इस प्रकार किया गया था कि स्पष्ट कुछ पता न चले। उन्होंने अपने भाइयों से कहा- ”चाचा विदुर ने जैसा कहा था, वैसा ही यह महल बना हुआ है। इसमें आग भड़काने वाले पदार्थों की भारी मात्रा है। स्पष्ट रूप से यह हमें जलाकर मार डालने का षड्यंत्र किया गया है। हमें इससे बचने का उपाय करना पड़ेगा।“
इस पर महाबली भीम ने अपनी राय दी- ”भ्राताश्री! यदि ऐसा है तो हमें इस भवन में रहने से मना कर देना चाहिए और उसी पुराने भवन में चले जाना चाहिए, जहाँ ऐसी कोई आशंका नहीं है।“
यह सुनकर युधिष्ठिर ने कहा- ”ऐसा करना उचित नहीं होगा, क्योंकि इससे वे समझ जायेंगे कि हमें उनके षड्यंत्र का पता चल गया है। तब वे सावधान हो जायेंगे और हमें किसी अन्य उपाय से समाप्त करने का प्रयास अवश्य करेंगे। इसलिए पुरोचन को भुलावे में ही रहने दो। उसको हमारे मन के भाव पता नहीं चलने चाहिए।“
सभी भाई इससे सहमत हो गये। लेकिन अर्जुन ने पूछा- ”भ्राताश्री! चाचा विदुर ने आपको इस संकट से बचने का कोई उपाय भी अवश्य बताया होगा।“
”हाँ, अर्जुन! आर्य विदुर ने मुझे स्पष्ट कहा था कि वन में लगने वाली आग से बिलों में रहने वाले जन्तु अपनी रक्षा कर लेते हैं। मैं समझ गया था कि वे हमें कोई सुरंग बनाकर यहाँ से निकल भागने का परामर्श दे रहे थे। यही एकमात्र उपाय है। हम ऐसा ही करेंगे। हमें सुरंग खोदने के लिए कोई योग्य खनिक चाहिए।“
भीम ने कहा- ”भ्राताश्री! क्या दुष्ट दुर्योधन को पितामह भीष्म का भी भय नहीं है। यदि उनको इस षड्यंत्र का पता चल गया, तो वे बहुत क्रोध करेंगे।“
”हम उनको सूचना दे भी दें, तो वे क्या करेंगे? अभी हमारे पास कोई सुदृढ़ प्रमाण भी नहीं है कि वे हमें आग में जलाकर मार डालना चाहते हैं। यदि पितामह को सूचना मिल भी गयी, तो जब तक वे कुछ करेंगे, तब तक तो हम सब जलकर मर जायेंगे। फिर उनका क्रोध किस काम आएगा?“
”यह सत्य है भ्राताश्री!“
”यह कपट योजना निश्चय ही महाराज धृतराष्ट्र की अनुमति से बनायी गयी होगी। उन्होंने ही हमें वारणावत जाने का आदेश दिया था। इसलिए हम अब हस्तिनापुर भी नहीं लौट सकते।“ सभी ने इस पर स्वीकृति में सिर हिलाया।
युधिष्ठिर आगे कहने लगे- ”यदि हम आग में जलने के भय से कहीं भाग जाते हैं, तो दुर्योधन अपने गुप्तचरों से हमारा पता लगाकर हमें मरवा देगा। वह हमारी हत्या करा देगा और कोई दुर्घटना प्रचारित कर देगा। इसलिए हमें पापी पुरोचन और दुष्ट दुर्योधन दोनों को धोखे में रखना है और इस आग से भी बचना है। यहाँ से बचकर हम किसी सुरक्षित स्थान पर गुप्त रूप में निवास करेंगे और समय आने पर प्रकट होंगे।“ सभी भाइयों ने फिर इस पर अपनी सहमति जतायी।
”हमें शीघ्र सुरंग खोदने का कार्य प्रारम्भ कर देना चाहिए। अभी सभी लोग मृगया के बहाने अश्वों पर सवार होकर यहाँ से गंगा नदी तक पहुँचने के सबसे छोटे और सुगम रास्ते का पता लगायें, ताकि हम शीघ्र से शीघ्र इस संकटपूर्ण स्थान से निकल सकें।“
सभी भाइयों ने इस पर भी सहमति में सिर हिलाया। अन्त में युधिष्ठिर ने सबसे एक बार फिर स्पष्ट रूप से कहा कि पुरोचन को किसी भी तरह इसका पता नहीं चलना चाहिए कि हमें उस पर सन्देह हो गया है और हम बच निकलने का उद्योग कर रहे हैं।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल