उपन्यास अंश

लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 27)

इधर हस्तिनापुर में जब यह समाचार पहुँचा कि जिस भवन में पांडवों ठहरे हुए थे उसमें आग लग गयी है और सभी पांडव अपनी माता सहित जलकर मर गये हैं, तो पूरे नगर में शोक व्याप्त हो गया। यह समाचार जानकर भीष्म को बहुत शोक हुआ। वे बहुत पछताये कि उन्होंने पांडवों को वारणावत जाने से रोका क्यों नहीं और उनकी रक्षा का उपाय क्यों नहीं किया। लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। इसलिए इसको उन्होंने नियति का घटनाक्रम मानकर सन्तोष कर लिया। एक प्रकार से उनको प्रसन्नता ही हुई कि अब कुरुवंश की दो शाखाओं के बीच का संघर्ष समाप्त हो जाएगा और हस्तिनापुर की ख्याति बढ़ती रहेगी।

धृतराष्ट्र, दुर्योधन आदि ने भी पांडवों के जलकर मर जाने का बहुत शोक मनाया, चाहे दिखावे के लिए ही, क्योंकि वे यह प्रकट नहीं होने देना चाहते थे कि इस अग्निकांड में उनकी कोई भूमिका थी।

धृतराष्ट्र ने पांडवों के लिए शोक में बहुत विलाप किया- ”मेरे प्रिय भाई पांडु ने कोई सुख नहीं देखा। उनके पाँच बली और गुणी पुत्र इस तरह साधारण जन्तुओं की तरह आग में जलकर मर गये। यह हमारा कितना बड़ा दुर्भाग्य है।“ इस तरह बहुत-सी बातें करके धृतराष्ट्र विलाप करने लगे। महामंत्री विदुर ने उनको आत्मा की नश्वरता का उपदेश दिया और विधाता की इच्छा को शिरोधार्य करके धैर्य रखने का परामर्श दिया। इससे धृतराष्ट्र ने विलाप बन्द कर दिया और आवश्यक क्रियाओं में लग गये। उन्होंने दिखावे के लिए ही सभी पांडवों का विधिवत् पिण्डदान भी किया।

फिर धृतराष्ट्र ने अग्निकांड की जाँच के लिए अधिकारी नियुक्त किया और उसे जाँच करने के लिए भेजा। उसने लौटकर यही कहा कि आग दुर्घटनावश लगी थी और पांडवों को ही नहीं पुरोचन को भी बाहर निकलने का अवसर नहीं मिला। इस जाँच के बाद इस घटना को दुर्घटना मान लिया गया।

हस्तिनापुर के नागरिकों ने इस बात पर विश्वास नहीं किया कि भवन में आग दुर्घटना से लगी होगी। उनको विश्वास था कि पांडव कौरवों द्वारा रचे गये किसी षड्यंत्र के शिकार हुए हैं। उनके संदेह के कई कारण थे- एक, दुर्योधन के मंत्री द्वारा नये भवन का निर्माण कराना, जबकि एक सुन्दर भवन पहले से ही उपलब्ध था। दो, पांडवों को उनकी इच्छा के विरुद्ध वारणावत भेजना, जबकि उसकी कोई आवश्यकता नहीं थी। तीन, माता कुंती को भी युवराज के साथ भेजना, जबकि उनकी भी वहाँ कोई आवश्यकता नहीं थी। इससे नागरिकों को यह निष्कर्ष निकालने में कोई देर नहीं लगी कि वारणावत का अग्निकांड वास्तव में पांडवों को उनकी माता सहित जलाकर मार डालने का घृणित षड्यंत्र था, जो दुर्भाग्य से सफल हो गया।

नागरिकों को विश्वास था कि इस पूरे षड्यंत्र को अवश्य ही धृतराष्ट्र की अनुमति और आशीर्वाद रहा होगा, क्योंकि उनके ही आदेश से पांडवों को वारणावत भेजा गया था। इसलिए सभी लोग धृतराष्ट्र की निन्दा करने लगे। लेकिन प्रत्यक्ष में कोई नागरिक कुछ नहीं कर सकता था, क्योंकि अब समस्त शक्तियाँ दुर्योधन के हाथों में केन्द्रित थीं और पितामह भीष्म ने भी इसको दुर्घटना मानकर स्वीकार कर लिया था। इसलिए सभी नागरिक कुछ समय बाद शान्त हो गये।

यह सत्य केवल महामंत्री विदुर को ज्ञात था कि पांडव उस आग से सकुशल बचकर निकल गये हैं और अब राक्षसों के क्षेत्र में रह रहे हैं। उन्होंने यह जानकारी भीष्म को भी नहीं दी, क्योंकि उन्हें डर था कि उनको बताने पर यह बात गुप्त नहीं रहेगी। इसलिए उन्होंने भीष्म को उचित समय आने तक अँधेरे में ही रखना उचित समझा। सबकी तरह उन्होंने भी शोक मनाया और पांडवों के गुणों का बखान किया। उन्होंने पांडवों की आत्मा की शान्ति के लिए भी सभी क्रियायें अपनी देख-रेख में करायीं। पुरोहितों के निर्देशों के अनुसार उन्होंने शान्ति यज्ञ भी कराया और ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान-दक्षिणा भी दिलवायी। फिर वे सामान्य रूप से राजकार्य देखने लगे।

— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com