गीत/नवगीत

पर तुम ना घबराना

कठिन डगर है, कोई न साथी, पर तुम ना घबराना
अंधियारा भी हो जाए तो, लक्ष्य को भूल ना जाना।

अपने दम पर अपनी राहें, विरले ही चुनते हैं
खुले नैन से दुष्कर सपने, कुछ ही तो बुनते हैं
तुम काँटों के वन को अपनी, सुरभि से महकाना
अंधियारा भी हो जाए तो, लक्ष्य को भूल ना जाना।1।

ताक रहा है तुम्हें ज़माना, सब हैं नज़र गड़ाए
आसमान से मेरा तारा, कहीं टूट ना जाए
अपने युग की नयी कहानी,अंबर पर लिख जाना
अंधियारा भी हो जाए तो, लक्ष्य को भूल ना जाना।2।

नाम सभी के इस जग में, सब सिद्ध कहाँ होते हैं?
अपनी मंज़िल पाने वाले, बुद्ध यहाँ होते हैं
जिसे कोई ना रोक सके तुम, वह अनिरुद्ध कहाना
अंधियारा भी हो जाए तो, लक्ष्य को भूल ना जाना।3।

चकमक आभा काले जग की, राहें भी रोकेगी
कदम-कदम पर बाधाएँ मिल, तुमको भी टोकेगी
मगर अमावस में बनकर तुम, ‘शरद’ चंद्र मुसकाना
अंधियारा भी हो जाए तो, लक्ष्य को भूल ना जाना।4।

— शरद सुनेरी