मुक्तक
(1)
सबसे हिल-मिलकर रहो,तभी बनेगी बात।
जब सब सद्भावी बनें,तब रोशन हो रात।
यही आज संदेश है,यही आज उद्घोष,
भारतवासी एक हों,तब मिलती सौगात।।
(2)
हिन्दू-मुस्लिम एक हैं,मानव सारे एक।
सबको बनना है यहाँ,मानुष चोखा,नेक।
पुलकित हो सौहार्द नित,नेह पले हर हाल,
सभी धर्म तो एक हैं,दिखते भले अनेक।।
(3)
अंधकार में रोशनी,बिखरेगी तब ख़ूब।
उगे देश में एकता,की जब पावन दूब।
टूटन अरु दुर्भाव का,होता दुष्परिणाम,
पलती यदि नहिं एकता,सब कुछ जाता डूब।।
(4)
सद्भावी यह देश है,अमन-चैन का भाव।
सब क़ौमों में एकता,दिखता नेहिल ताव।
जब पलता सद्भाव तब,खुशियाँ करतीं राज,
खुशहाली रहती सदा,दिखता सार,प्रभाव।।
(5)
धर्म सभी तो एक हैं,मत करना तुम भेद।
वरना तो होगा अभी,एक्य भाव में छेद।
हो यदि क़ौमी एकता,गूँजे मंगलगान,
वरना होना तय ‘शरद’,बेहद सबको खेद।।
— प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे