प्रभावशीलता
आज लोकेश ने ”राज्य डांस कम्पटीशन” की ट्रॉफी जीतकर सबको हैरान तो किया ही, सबसे ज्यादा हैरान वह खुद था.
”राज्य डांस कम्पटीशन” के पुरस्कार वितरण समारोह में स्मृतियों की रील उसके सामने चलती गई.
”इस थुलथुल काया के साथ तुम कभी भी डांस में किसी खास मुकाम पर नहीं पहुंच सकते.” उसकी डांस टीचर ने कहा था.
”सही तो कहा था टीचर ने मैं जल्दी थक जो जाता था!” लोकेश नहीं, उसकी स्मृति मुखर थी.
”जरूरी नहीं है, कि थुलथुल काया वाले अच्छे डांसर नहीं हो सकते. सरोज खान को तो तुमने डांस करते देखा था न! क्या गज़ब की लचक थी उनके शरीर में. मेरे विचार से उनके जैसा श्रेष्ठ डांस मास्टर / डाइरेक्टर / कोरियोग्राफर भारत में तो शायद ही कोई हो!” डांस टीचर मां ने मेरे मनोबल को बढ़ाते हुए कहा था.
”वैज्ञानिकों के अनुसार भौंरे का शरीर बहुत भारी होता है. इसलिए विज्ञान के नियमों के अनुसार वह उड़ नहीं सकता. लेकिन भौंरे को इस बात का पता नहीं होता, इसलिए वह यह मानता है कि वह उड़ सकता है. लगातार कोशिश करते-करते हार जाने पर भी वह हार नहीं मानता. अंततः वह उड़ने में सफल हो जाता है.” वैज्ञानिक पिता ने भी मेरे साहस को संवर्धित करने की पूरी कोशिश की थी.
”लेकिन मैं सबकी बातों को नकारता गया. सरोज खान श्रेष्ठ डांस मास्टर / डाइरेक्टर / कोरियोग्राफर थीं और भौंरा तो एक कीड़ा होता है. न तो मैं डांस मास्टर हूं, न कीड़ा. मैं कैसे विजेता बन सकता हूं!” मेरे हौसले को पंख लगने ही नहीं पाए.
”तभी मैंने सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर सुदर्शन खन्ना का एक ब्लॉग ”ध्यान से- 98” पढ़ा. इस ब्लॉग में उनके एक किरदार का एक कथन था- ”कभी-कभी थकान का मानसिकता से भी संबंध होता है.” इस कथन ने जैसे मेरे मन को झिंझोड़ दिया और अपने लक्ष्य के प्रति मेरी आस्था और दृढ़ हो गई. अब मैंने अपनी थुलथुल काया से अपने कार्य-निष्पादन को प्रभावित नहीं होने दिया.” लोकेश ने मन-ही-मन लेखक की प्रभावशीलता को नमन किया.
”अब न थकान थी, न हार थी,” लोकेश तनिक भावुक हो गया था. ”न सरोज खान से खुद को कम समझने का भाव और न ही भौंरे को महज कीड़ा समझने की भूल! अब थी तो केवल जीत-ही-जीत. हर स्तर पर जीत के बाद अब राज्य स्तर पर जीत!”
”अब हम राज्य स्तर के सर्वश्रेष्ठ डांसर लोकेश खुराना को मंच पर आकर प्रमाणपत्र लेने के लिए आमंत्रित करते हैं” तभी मंच से घोषणा हुई और पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.
इस घोषणा से उसकी तंद्रा भंग हुई और वह मंच पर खड़ा था.
”अपनी जीत का श्रेय आप किसको देना चाहेंगे!” मंच पर उससे पूछा गया था.
”सुदर्शन सर के प्रभावशाली लेखन को.” उसने सुदर्शन खन्ना की ओर संकेत करते हुए कहा था, ”इनका लेखन ही मेरे मनोबल को एक निर्णायक भूमिका निभानेवाला तत्व सिद्ध हुआ.”
”सुदर्शन सर के हाथों ही मुझे यह ट्रॉफी दी गई.” लोकेश ने अपनी ट्रॉफी को चूमते हुए कहा.
मनोबल या ‘हौसला’ का अर्थ है – किसी समूह के सदस्यों की उस संगठन या उसके लक्ष्य के प्रति आस्था की दृढ़ता। मनोबल सीधे कार्य–निष्पादन को प्रभावित करता है। व्यक्ति चाहे स्वतन्त्र रूप से कार्य करे या संगठन में रहकर सामूहिक प्रयास करे, मनोबल एक निर्णायक भूमिका निभानेवाला तत्व सिद्ध होता है। मनोबल व्यक्ति की आंतरिक मानसिक शक्ति तथा आत्मविश्वास का पर्याय है।
मनः+बल] आत्मिक शक्ति । मानसिक शक्ति या बल
सुदर्शन भाई खुद तो लेखन में कुशल हैं ही, अन्य लोगों को भी लेखन के लिए प्रोत्साहित करते हैं. इसकी सबसे बड़ी मिसाल है- ”अखिलेश वाणी” जिसके 32 एपिसोड अब तक आ चुके हैं.
सुदर्शन भाई एक अच्छे लेखक के साथ एक अच्छे वक्ता भी हैं. धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं में उनके वक्तव्य को बड़े आदर-सम्मान के साथ देखा-सुना-पढ़ा जाता है. वहां के नारों और श्यामपट्ट पर अनमोल वचन-लेखन का काम सुदर्शन भाई ही संभालते हैं. यहीं हम आपको बताते चलें, कि उनका लेख यानी हस्तलिपि / सुलेख भी सराहनीय है, जिसका श्रेय वे अपने पूजनीय पिताजी को देते हैं. हर काम में पूर्ण इनके पूजनीय पिताजी ने इन्हें पूर्णता और विस्तार तक पहुंचाया.
सुदर्शन भाई अनेक भाषाओं के जाने-माने विद्वान हैं. मजे की बात यह है, कि सभी भाषाओं में पूर्णता तक पहुंचे हुए हैं. हिंदी, इंग्लिश, संस्कृत, उर्दू, पंजाबी पर तो उनकी पूरी पकड़ है. एक-एक शब्द व व्याकरण के नियम की बारीकी से वे वाकिफ हैं.
सुदर्शन भाई को पूजनीय पिताजी ने और माताजी ने विद्या को एक बड़ी और कठोर तपस्या मानना सिखाया. इसी तपस्या के प्रतिफल से उनका मूलाधार चक्र जागृत हो गया. आज उनकी वाक-प्रतिभा और लेखन-प्रतिभा संभवतः उसी तपस्या का ही प्रतिफल है.
साहित्य की प्रभावशीलता निर्विवाद है. जहां सत्साहित्य जीवन को सकारात्मक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, वहीं नकारात्मक साहित्य जीवन में दुश्वारियों को बढ़ाकर जीवन और समाज को दूषित कर देता है. अच्छे लेखन की एक ही प्रभावशील पंक्ति ऐसा कमाल दिखा जाती है, कि जमाने के साथ-साथ जीतने वाला खुद भी हैरान हो जाता है. साहित्य के चंद प्रेरक शब्द ही जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाकर जीवन को एक सुखद दिशा की ओर मोड़ सकते हैं. दिल छू जाने वाले सत्साहित्य की ऐसी प्रभावशीलता को हमारा हार्दिक नमन.