कलम रो रही है
शब्द घायल हैं, कलम रो रही है,
खबर यह सहन नहीं हो रही है।
देश सेवा को समर्पित जीवन,
मातृभूमि को अर्पित जीवन,
जनता देशभक्त को खो रही है।
खबर यह सहन नहीं हो रही है।
घर के हालातों को समझकर,
दुश्मनों को मारा उसने घुसकर,
बस यूँ जनता चैन से सो रही है।
खबर यह सहन नहीं हो रही है।
सेना का आधुनिकीकरण किया,
दुश्मनों को मुँह तोड़ जवाब दिया,
जनता आंसुओं से मुँह धो रही है।
खबर यह सहन नहीं हो रही है।
देखो! कैसी दुःखद घड़ी आई,
“सुलक्षणा” देश में मायूसी छाई,
कलम आज शब्दों को ढ़ो रही है।
खबर यह सहन नहीं हो रही है।
— डॉ सुलक्षणा