कुछ करते हैं
रह गया है कुछ अनछुआ सा
चल उसको टटोलते हैं
परत दर परत जिंदगी के
हर पन्ने को फिर खोलते हैं.
रह गए कुछ सपने अधूरे
एक एक कर पूरा करते हैं
जी ना सके जो वह बीता पल
अब उन्मुक्त उड़ान भरते हैं
कसक मन में कुछ क्यों रहे
दर्द यह सब क्यों सहे
गहराई चलो नापे जिंदगी की
देखें फिर हम कैसे डूबते हैं.
परत दर परत जिंदगी की
हर पन्नों को हम खोलते हैं.
जीवन सागर से चुनकर मोती
सीपीयों में उसको गढ़ते हैं
एक एक कर जिंदगी को
एक धागे में पिरोते हैं.
परत दर परत जिंदगी के
हर पन्ने को फिर खोलते हैं.
— सविता सिंह मीरा