ग़ज़ल
हालात मुझे बड़े अजीब नजर आने लगे,
हर तरफ गरीब ही गरीब नजर आने लगे।
अमीर करने लगे खिलवाड़ जिंदगियों से,
कुछ यूँ खुद को बदनसीब नजर आने लगे।
सरकारें गुलाम हो गयी दौलत वालों की,
पुराने मंजर फिर से करीब नजर आने लगे।
गुलामी की आदत डालनी पड़ेगी फिर से,
जानी दुश्मन ही अब हबीब नजर आने लगे।
“सुलक्षणा” मुफ्तखोरी की लत मार रही है,
आगाह करने वाले रकीब नजर आने लगे।
— डॉ सुलक्षणा