अधरों की मुस्कान पर
लिख डाले हैं गीत अनेको अधरों की मुस्कान पर।
लिखे छंद कारे नैनों पर चढ़े कटीले बाण पर।
कड़ी सर्द में तुम्हें लिखा है गुनगुनी धूप एहसास सा,
अंधियारे में लिखा है तुमको मैने धवल प्रकाश सा।
कवि बन बैठा गीतों को लिख यहाँ रूप की खान पर,
लिख डाले हैं गीत अनेकों अधरों की मुस्कान पर।
शब्दों के श्रृंगार से मैंने लिखा यहाँ श्रृंगार तुम्हारा,
गीत बसे जन जन के मन में यह तो है उपकार तुम्हारा।
खिल जाते हैं प्रेम सुमन सुनकर गीतों की तान पर,
लिख डाले हैं गीत अनेकों अधरों की मुस्कान पर।
राही बनकर मैं पतझर का तुमको मधुर बहार लिखा,
जो भी पलते स्वप्न नैन में उनको मैंने साकार लिखा।
होश नहीं मदहोश घूमता नैनों की हाला का पान कर,
लिख डाले है गीत अनेकों अधरों की मुस्कान पर।
— अशोक प्रियदर्शी