चाहे जितने कष्ट पड़ें पर,हमको नित मुस्काना है।क्यो रोते हो सुख दुख खातिर,सुख दुख आना जाना है।महल अटारी जो भी दिखता,एक दिन सबको मिटना है।रब ने जितना दिया तुम्हें है,मत सोंचो कि कितना है।रूखी सूखी खाकर के भी,गीत खुशी के गाना है।क्यो रोते हो सुख दुख खातिर,सुख दुख आना जाना है।हालातों से डरकर के तो,कायर […]
Author: अशोक प्रियदर्शी
अधरों की मुस्कान पर
लिख डाले हैं गीत अनेको अधरों की मुस्कान पर।लिखे छंद कारे नैनों पर चढ़े कटीले बाण पर।कड़ी सर्द में तुम्हें लिखा है गुनगुनी धूप एहसास सा,अंधियारे में लिखा है तुमको मैने धवल प्रकाश सा।कवि बन बैठा गीतों को लिख यहाँ रूप की खान पर,लिख डाले हैं गीत अनेकों अधरों की मुस्कान पर।शब्दों के श्रृंगार से […]
गीतों में तुमको छिपाते रहे
हम तो गीतों में तुमको छिपाते रहे। गीत गाकर सदा मुस्कुराते रहे। लेखनी को उठाकर के लिखता हूँ तब, लहरें यादों की मुझको भिगोती हैं जब। गीत तुम पर लिखे गुनगुनाते रहे, हम तो गीतों में तुमको छिपाते रहे। प्रेम के भाव गीतों में बसते रहे, गुन गुनाकर उन्हें हम तो हँसते रहे। गम के […]
मानवता की मशाल
नफरत से नित दूर रहें और लिखें प्रीत के गीत। मानवता की मशाल थामकर बनें सभी के मीत। द्वेष भाव कभी भी मन के आलय में ना आये। विपदाओं में भी हम तो नित ऐसे ही मुस्काये। मन के हारे हार है मिलती मन के जीते जीत। मानवता की मशाल थामकर बनें सभी के मीत। […]
आओ मिलकर बंधन तोड़ें
आओ मिलकर बंधन तोड़ें, प्रेम डगर से हमें जो मोड़ें। जो होते हैं ऊंच नीच के, बंधते लोग हैं आंख मींच के। पर स्वार्थ की अब सब सोंचें, मानवता के नीर से सींच के। नैतिकता से मुंह मत मोड़ें। आओ मिलकर बंधन तोड़ें।। मानव की मानव से फिर, कभी भी कोई रार न हो। हँसी […]
माँ
माँ तेरे चरणों की धूल से,बढ़कर क्या वो जन्नत है।तू ही पूजा तू ही इबादत,तू ही मेरी मन्नत है।एक क्षणभर में जो मुरझाए,तेरी ममता वैसा फूल नहीं।माँ तेरी ममता से बढ़कर,मुझको कुछ भी कबूल नहीं।बचपन में जब करता था मैं,हद से ज्यादा शैतानी।शैतानी में ध्यान न देती,मेरी समझकर नादानी।मेरे दुखों में तू न रोये,ये तो […]