कविता

हमको नित मुस्काना है

चाहे जितने कष्ट पड़ें पर,
हमको नित मुस्काना है।
क्यो रोते हो सुख दुख खातिर,
सुख दुख आना जाना है।
महल अटारी जो भी दिखता,
एक दिन सबको मिटना है।
रब ने जितना दिया तुम्हें है,
मत सोंचो कि कितना है।
रूखी सूखी खाकर के भी,
गीत खुशी के गाना है।
क्यो रोते हो सुख दुख खातिर,
सुख दुख आना जाना है।
हालातों से डरकर के तो,
कायर ही झुक जाते हैं।
खुद की ताकत भूल राह में,
थक कर के रुक जाते हैं।
जीवन मानो सफल उसी का,
जिसने चलने की ठाना है।
क्यो रोते हो सुख दुख खातिर,
सुख दुख आना जाना है।

— अशोक ‘प्रियदर्शी’

अशोक प्रियदर्शी

चित्रकूट-उत्तर प्रदेश मो0 6393574894