कोई लौटा दे मेरा बचपन
कहाँ खो गया मेरा शाही बचपन
पेड़ों के झुरमुट की छाँव में बैठकर
खुद में खुद ही खोकर कैसे मैं
अपने बचपन को अब लाऊँ मैं
कोई तो लौटा दे मेरा बचपन
स्कूल जाने में आनाकानी कर
बहाना बना घर लौट आना
गुली डंडा साथियों सहित खेलना
कंचे खेलते हार-जीत में झगड़ना
आता है याद मेरा मासूम बचपन
कोई तो लौटा दे मेरा वो बचपन
पतंग उड़ाते आई बो का शोर
कागज के जहाज की उड़ान
रंगीन स्वप्नों के पंख लगाती
फूलों पर मंडराती तितलियाँ
को हाथ में पकड़ते खुश होना
माँ-बाप से जिद्द कर सब पाऊँ
अब वो बचपन कहाँ से लाऊँ….
घर से दफ्तर, दफ्तर से घर
काम का बोझ, सकून कैसे पाऊँ
याद आते हैं बचपन के शाही दिन
कोई तो लौटा दे मेरा वो बचपन
सुन सकूँ परी लोक की कहानियाँ
वैर-विरोध भूल बचपन कहाँ से लाऊँ
अपने-पराये की मैल न चढ़े मन पर
लौटा दे मुझे कोई ऐसा बचपन …..
मौला मस्त हो जाऊँ मैं ……..
— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन