गमें जिंदगी
साकी क्यों पीते हैं हम
कभी तो पूछा होता तूने
यह शराब नहीं
गम के घूंट हैं
छलक न जाए
आंखों से
छिपाने को हम पीते हैं
छलका के जाम
बचा लेते हैं
छलकने से
गमों को अपने
साकी समझी
क्यों पीते हैं शराब
महफ़िल उठने से पहले
राज अपना खोल जाते हैं.
गमों को गलत करने के लिए
हम पीते हैं शराब
न पिएं जो शराब
तो घुट घुट के मर जाएंगे
पीके इसे हम
भूल जाते है गम
जी लेते है चैन से
कुछ लम्हों के लिए