कविता

गमें जिंदगी

साकी क्यों पीते हैं हम
कभी तो पूछा होता तूने
यह शराब नहीं
गम के घूंट हैं
छलक न जाए
आंखों से
छिपाने को हम पीते हैं
छलका के जाम
बचा लेते हैं
छलकने से
गमों को अपने
साकी समझी
क्यों पीते हैं शराब
महफ़िल उठने से पहले
राज अपना खोल जाते हैं.
गमों को गलत करने के लिए
हम पीते हैं शराब
न पिएं जो शराब
तो घुट घुट के मर जाएंगे
पीके इसे हम
भूल जाते है गम
जी लेते है चैन से
कुछ लम्हों के लिए

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020