बादल पे पांव हैं…
बादल पे पांव हैं, दृष्टि में मां,
अपनों में मां, सपनों में मां,
सृष्टि के कण-कण में मां,
जिधर नजर घुमाऊं मां-ही-मां.
आनंद स्वरूप हैं मां,
सर्दियों में धूप है मां,
गर्मियों में छांव है मां,
स्नेहिल-प्रेमिल अनूप है मां.
घर में मां, मन में मां,
यादों में मां, वादों में मां,
कहो तो कहां नहीं है मां,
सृजन की साक्षात मूर्ति है मां.
एक मां ही तो ऐसी नेमत है,
मरकर भी कभी मर ही नहीं पाती है,
कयामत तक आशीर्वाद का हाथ,
सिर पर रखकर चैन पाती है.
बादल पे पांव हैं, दृष्टि में मां,
अपनों में मां, सपनों में मां,
सृष्टि के कण-कण में मां,
जिधर नजर घुमाऊं मां-ही-मां.