कविता

संस्कार सब झांक रहे हैं

मानवता को कुचले हो
चोरी से बहार निकले हो
संस्कार सब झांक रहे हैं
जान बूझ कर फिसले हो

कुचक्र में तुम फंसे जा रहे
दलदल में तुम धंसे जा रहे
मौज का दावा करने वाले
बाहर तुम कहां निकले हो

सदाचार स्वाहा कर डाला
जिगर तुम्हारा हो गया काला
अब प्रेम दिखावा लगता है
हर मोंड़ पर तुम मचले हो

गोरे की भाषा बोल रहे
रेश्मी दामन तौल रहे
जमीर जला के चकाचौंध में
कैसे तुम अभी सम्भले हो

इंसानियत सहमी देखी इस (राज) में
चारो तरफ फरेब दिखता है आज में
ये दरख्त गुमां न कर जमाना देखने का
इस आबो हवा में नये नये निकले हो।
मानवता को कुचले हो
चोरी से बहार निकले हो

राज कुमार तिवारी (राज)
बाराबंकी देखी

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782