यह जीवन कितना देता है
यह जीवन कितना देता है यदि धैर्य रखे तू जीवन में।
अमृत भी अनायास देता मदिरा के खाली बर्तन में।।
परतों पर परतें लाद के तू जग में पावन अभिमानों की,
अभिनयी शक्ति से हर पल ही नव मूर्ति गढ़े इंसानों की।
यश अपयश हानि लाभ जीना मरना सब सौंप विधाता को,,
जब आत्मगंग में मज्जन कर मुख देख ज़रा तब दर्पण में।।
यह जीवन कितना,,,,,
भेजा माँ ने कर्तव्य मार्ग पर डट जाने का मंत्र फूँक,
“माँ!आजाना” बस कह कर चुप हो जाती है शाविका हूक।
हम सम्बन्धों की डोर बनाकर नित ही जूझा करते हैं,
पर अहा! मुक्त आभास हुआ करता है मुझको बन्धन में।।
यह जीवन कितना देता है,,,
हिलता डुलता घट कब कोई परिपूर्ण कहाँ हो सकता है,
हर अवसर पंख लगा उड़ता कब किसके आगे रुकता है।
उस महाकाल की रचनाओं में तू भी एक संरचना है ,
कब अवगुंठित अखिलेश हुआ किस इंद्रधनुष आकर्षण में।।
यह जीवन कितना देता है यदि धैर्य रखें तू जीवन में।|
— अखिलेश चंद्र पाण्डेय ‘अखिल’