कुर्सी की लहर : कोरोना लहर
रेली खौं तैयार हैं, सबरे देखो धूत |
ठेल-ठेल कें बड़ रहे, कालनीत के दूत ||
जैसा कि सर्व दृष्टिगोचर है कि चुनावी दौर चल रहा है, रैलियों की तैयारी, चुनावी प्रचार-प्रसार के लिए सभी दलों के नेता कई योजनाएँ बनाकर चल रहे हैं | तरह-तरह के प्रलोभन, वादे, एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते हुए स्वयं को सिद्धहस्त साबित करना और वाद-विवाद करते हुए विकास की राजनीति का परचम लहराना | कीचड़ सी इस राजनीति में निष्पक्ष और राष्ट्रप्रेमी नेता इतिहास में बस कुछ एक ही गिनतियों में हैं, जिनके कृत्य अविस्मरणीय हैं |
अब अपने ही देश के दुश्मन बने लोगों के लिए तो कुर्सी की खींचतान अपनी जान से भी आगे है, तो कोरोना उनके जुनून के आगे क्या चीज़ है ? साम-दाम, दंड-भेद
हर प्रयास करेंगे विपक्ष को नीचा दिखाने की | चुनाव आयोग की स्वीकृति का ठप्पा भर लगने की फिराक है बस फिर देखो हर चाल-जाल-बवाल |
आप ज़रा सोचिए कि कोरोना सबको दिखता नहीं है पर सबको अप्रत्यक्ष उपस्थिति से पकड़ता है इसकी जानकारी हम सभी को है, लेकिन इससे बचने के उपाय मास्क लगाना,बार-बार हाथ धोना और सोशल डिस्टेन्सिंग के नियमों का पालन कर ये सब हमें ज्ञात हैं और इन नियमों का पालन कर हम सुरक्षित भी रह सकते हैं किन्तु कुर्सी की लहर का क्या करें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सभी रूपों में दिखाई भी देती है, बातों से ठग भी लेती है और बहला-फुसला कर हमारा सबसे बड़ा अस्त्र वोट हमसे लेने के बाद अगले पाँच साल तक हम पर तांडव करती है, हमारी तिल-तिल करके जान लेती है और छीन लेती है हमारा चैन-सुकून |
ये भयानक स्वार्थी लहर हर पाँच साल में आती है तो क्यों नहीं पहचान लेते इसके नापाक इरादे पहले से ? क्यों हमें अपने वोट की ताकत का अंदाज़ा नहीं हो रहा | आज भी हम जागृत नहीं हैं ! और हर बार की तरह कुर्सी की लहर की चपेट में आ जाते हैं और बार-बार भीतर से मरते हैं | बचना है तो इसकी चपेट में आने से बचो तभी खुद को बचा सकोगे | जो इस कुर्सी पर बैठकर तुम्हारे साथ न्याय कर सकता हो, और हितकारी हो, उसको ही इस पर बिठाओ वरना खींच लो कुर्सी की टांग ऐसे कि फिर कभी कोई अपने स्वार्थ और अपनी जेबें भरने के लिए इस कुर्सी पर बैठने की हिमाकत न कर सके | इस प्रकार ही हम सब कुर्सी की लहर से होने वाले भयंकर नुकसान से बच सकते हैं |
— भावना अरोड़ा ‘मिलन