लघुकथा

फर्क

कॉलेज की रियूनियन पार्टी में छवि को देख सजल चौंक गया। पहले ही की तरह बेहद दिलकश और खूबसूरत लग रही थी। सबसे मुस्कुरा कर मिल रही थी। पर हां! चेहरे पर चुलबुलेपन की जगह गंभीरता ले चुकी थी।

अपने दिए धोखे को भूल, सजल उसके सामने जा पहुंचा और हालचाल पूछने लगा।

“अच्छी हूं”, कह कर जैसे ही छवि जाने को हुई, सजल हँसते हुए बोला,”तो तुमने भी अपना घर बसा ही लिया?”

“हां! बसा तो लिया। पर, घर बसाने और दिल बसाने में फर्क होता है।” उसकी आंखों की नमी बहुत कुछ कह गई थी।

जाने क्यों, आज सजल के भीतर भी कुछ पिघल रहा था।

अंजु गुप्ता ✍🏻

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed