कविता

सवाल का उत्तर

पापा मुझे भी तो बताओ
तनिक सोच समझकर समझाओ
क्या मैं जन्म से ही पराई हूँ?
आपकी बेटी हूँ, माँ की जाई हूँ
भैया की बहन भी हूँ
दादा दादी की आँँखों का तारा हूँ।
मेरे जन्म पर तो आप बहुत खुश थे
खूब उछल रहे थे,
पाला पोसा बड़ा किया,
कभी आंख में आँँसू न आने दिया
हर ख्वाहिश को मान दिया।
अब में बड़ी हो गई हूँ
दादी कहती है ब्याहने योग्य हो गयी हूँ
क्या इसीलिए अभी से पराई हो गयी हूँ।
भैया भी तो भाभी को
ब्याहकर लाये हैं,
भाभी दूसरे घर से आई है,
फिर भी घर वाली हो गई
यह कैसा रिवाज  है समाज का
जहाँ जन्मी, खेली कूदी बड़ी हुई
उसी आँगन में पराई हो रही हूँ।
माना कि भैया ब्याहकर कही गया नहीं
बस इतने भर से कौन सा पहाड़
आखिर फट गया।
भैय्या जैसा मेरा भी तो
आप सबसे रिश्ता है,
मेरा हक भैय्या से क्यूँ कम है?
भैय्या से वंश चलेगा
लेकिन वंश चलाने में भी आखिर
किसी बेटी का ही तो दखल होगा।
वह आपके बुढ़ापे का सहारा बनेगा
तो क्या मैं इस लायक नहीं,
कभी ऐसा सोचा क्यों नहीं?
बेटा बेटा दिनभर कहते हो
बस बेटा आपका अंतिम संस्कार कर
पितृऋण चुकायेगा यही सोचते हो,
बेटी भी पितृऋण चुका सके
ये बात क्यों नहीं सोचते हैं?
बेटे में कौन से सुर्खाब के
भला पर लगे होते हैं?
बेटे भी तो बेटियों की तरह
किसी बेटी के ही कोख से जन्म लेते हैं
क्या बेटे बिना प्रसव पीड़ा के
भला जन्म ले लेते हैं?
पापा मेरा सवाल सिर्फ़ आप से नहीं
हर पिता और समाज से है
बेटियों के बिना आपका ही नहीं
समाज का अस्तित्व क्या है?
सोचिये, विचारिये समाज से पूछिए
फिर उत्तर दीजिए
आखिर मेरे सवाल का उत्तर क्या है?

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921